अव्यक्त: Difference between revisions
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<p class="HindiText">= आलोचना के दश दोष हैं - आकंपित, अनुमानित, यद्दृष्ट, स्थूल, सूक्ष्म, छन्न, शब्दाकुलित, बहुजन, '''अव्यक्त''' और तत्सेवी।</p> | |||
<p class="HindiText"> '''अव्यक्त''' - और मैंने इसके (आगम बाल वा चारित्र बाल मुनि के) पास संपूर्ण अपराधों की आलोचना की है मन, वचन, काय से और कृत, कारित, अनुमोदना से किये हुए अपराधों की मैनें आलोचना की है ऐसे जो समझता है, उसकी यह आलोचना करना नौवें दोष से दृष्ट हैं </p> | |||
<p class="HindiText">आलोचना का एक दोष। - देखें [[ आलोचना#2 | आलोचना - 2]]।</p> | |||
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Latest revision as of 14:11, 28 December 2022
भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 562
आकंपिय अणुमाणिय जं दिट्ठं बादर च सुहुमं च। छण्णं सद्दाउलयं बहुजण अव्वत्त तस्सेवी।
= आलोचना के दश दोष हैं - आकंपित, अनुमानित, यद्दृष्ट, स्थूल, सूक्ष्म, छन्न, शब्दाकुलित, बहुजन, अव्यक्त और तत्सेवी।
अव्यक्त - और मैंने इसके (आगम बाल वा चारित्र बाल मुनि के) पास संपूर्ण अपराधों की आलोचना की है मन, वचन, काय से और कृत, कारित, अनुमोदना से किये हुए अपराधों की मैनें आलोचना की है ऐसे जो समझता है, उसकी यह आलोचना करना नौवें दोष से दृष्ट हैं
आलोचना का एक दोष। - देखें आलोचना - 2।