आधारवत्त्व: Difference between revisions
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<span class="GRef">भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 428</span> <p class=" PrakritText ">चोद्दसदसणवपुव्वी महामदी सायरोव्व गंभीरी। कप्पववहारधारी होदि हु आधारवत्वं णाम। </p> | |||
<p>= जो चौदहपूर्व दसपूर्व, और | <p class="HindiText">= जो चौदहपूर्व, दसपूर्व, और नव-पूर्व का ज्ञाता है, जिसमें समुद्र तुल्य गंभीरता गुण है, जो कल्पव्यवहार का ज्ञाता है अर्थात् जो प्रायश्चित्त शास्त्र का ज्ञाता है उसमें बताए हुए प्रयोगों का जिसने अनुसरण किया है अर्थात् अपराधी मुनियों को जिसने अनेक बार प्रायश्चित्त देकर इस विषय में विशेष ज्ञान प्राप्त कर लिया है ऐसे आचार्य आधारवत्त्व गुण के धारक माने जाते हैं।</p> | ||
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भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 428
चोद्दसदसणवपुव्वी महामदी सायरोव्व गंभीरी। कप्पववहारधारी होदि हु आधारवत्वं णाम।
= जो चौदहपूर्व, दसपूर्व, और नव-पूर्व का ज्ञाता है, जिसमें समुद्र तुल्य गंभीरता गुण है, जो कल्पव्यवहार का ज्ञाता है अर्थात् जो प्रायश्चित्त शास्त्र का ज्ञाता है उसमें बताए हुए प्रयोगों का जिसने अनुसरण किया है अर्थात् अपराधी मुनियों को जिसने अनेक बार प्रायश्चित्त देकर इस विषय में विशेष ज्ञान प्राप्त कर लिया है ऐसे आचार्य आधारवत्त्व गुण के धारक माने जाते हैं।