इंद्रिय पर्याप्ति: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 1/1,1,34/254/9 </span><span class="SanskritText">सा(आहारपर्याप्तिः) च नांतर्मुहूर्तमंतरेण समये-नैकेनैवोपजायते आत्मनोऽक्रमेण तथाविधपरिणामाभावाच्छरीरोपा-दानप्रथमसमयादारभ्यांतर्मुहूर्तेनाहारपर्याप्तिर्निष्पद्यत इति यावत्। ...साहारपर्याप्तेः पश्चादंतर्मुहूर्तेन निष्पद्यते। ...सापि ततः पश्चादंतर्मुहूर्तादुपजायते। ...एषापि तस्मादंतर्मुहूर्तकाले समतीते भवेत्। एषापि (भाषापर्याप्तिः अपि) पश्चादंतर्मुहूर्तादुपजायते। ...एतासां प्रारंभोऽक्रमेण जन्मसमायादारभ्य तासां सत्त्वाभ्युपगमात्। निष्पत्तिस्तु पुनः क्रमेण। </span>= <span class="HindiText">वह आहार पर्याप्ति अंतर्मुहूर्त के बिना केवल एक समय में उत्पन्न नहीं हो जाती है, क्योंकि आत्मा का एक साथ आहार पर्याप्ति रूप से परिणमन नहीं हो सकता है। इसलिए शरीर को ग्रहण करने के प्रथम समय से लेकर एक अंतर्मुहूर्त में आहार पर्याप्ति पूर्ण होती है। ...वह शरीर पर्याप्ति आहार पर्याप्ति के पश्चात् एक अंतर्मुहूर्त में पूर्ण होती है। ...यह '''इंद्रिय पर्याप्ति''' भी शरीर पर्याप्ति के पश्चात् एक अंतर्मुहूर्त में पूर्ण होती है। ...श्वासोच्छवास पर्याप्ति भी इंद्रिय पर्याप्ति के एक अंतर्मुहूर्त पश्चात् पूर्ण होती है। ...भाषा पर्याप्ति भी आनपान पर्याप्ति के एक अंतर्मुहूर्त पश्चात् पूर्ण होती है... इन छहों पर्याप्तियों का प्रारंभ युगपत् होता है, क्योंकि जन्म समय से लेकर ही इनका अस्तित्व पाया जाता है। परंतु पूर्णता क्रम से होती है। <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड व.जीव तत्त्व प्रदीपिका/120/328)</span>। <br /> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ पर्याप्ति#2.6|पर्याप्ति-2.6]] </p> | |||
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Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
धवला 1/1,1,34/254/9 सा(आहारपर्याप्तिः) च नांतर्मुहूर्तमंतरेण समये-नैकेनैवोपजायते आत्मनोऽक्रमेण तथाविधपरिणामाभावाच्छरीरोपा-दानप्रथमसमयादारभ्यांतर्मुहूर्तेनाहारपर्याप्तिर्निष्पद्यत इति यावत्। ...साहारपर्याप्तेः पश्चादंतर्मुहूर्तेन निष्पद्यते। ...सापि ततः पश्चादंतर्मुहूर्तादुपजायते। ...एषापि तस्मादंतर्मुहूर्तकाले समतीते भवेत्। एषापि (भाषापर्याप्तिः अपि) पश्चादंतर्मुहूर्तादुपजायते। ...एतासां प्रारंभोऽक्रमेण जन्मसमायादारभ्य तासां सत्त्वाभ्युपगमात्। निष्पत्तिस्तु पुनः क्रमेण। = वह आहार पर्याप्ति अंतर्मुहूर्त के बिना केवल एक समय में उत्पन्न नहीं हो जाती है, क्योंकि आत्मा का एक साथ आहार पर्याप्ति रूप से परिणमन नहीं हो सकता है। इसलिए शरीर को ग्रहण करने के प्रथम समय से लेकर एक अंतर्मुहूर्त में आहार पर्याप्ति पूर्ण होती है। ...वह शरीर पर्याप्ति आहार पर्याप्ति के पश्चात् एक अंतर्मुहूर्त में पूर्ण होती है। ...यह इंद्रिय पर्याप्ति भी शरीर पर्याप्ति के पश्चात् एक अंतर्मुहूर्त में पूर्ण होती है। ...श्वासोच्छवास पर्याप्ति भी इंद्रिय पर्याप्ति के एक अंतर्मुहूर्त पश्चात् पूर्ण होती है। ...भाषा पर्याप्ति भी आनपान पर्याप्ति के एक अंतर्मुहूर्त पश्चात् पूर्ण होती है... इन छहों पर्याप्तियों का प्रारंभ युगपत् होता है, क्योंकि जन्म समय से लेकर ही इनका अस्तित्व पाया जाता है। परंतु पूर्णता क्रम से होती है। ( गोम्मटसार जीवकांड व.जीव तत्त्व प्रदीपिका/120/328)।
अधिक जानकारी के लिये देखें पर्याप्ति-2.6