अद्धायु: Difference between revisions
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<span class="GRef">भगवती आराधना विजयोदयी टीका गाथा संख्या 25/85/16</span> <p class="SanskritText">तत्रायुर्द्विभेदं अद्धायुर्भवायुरिति च।...अर्थापेक्षया द्रव्याणामनाद्यनिधनं भवत्यद्धायुः। पर्यायार्थापेक्षया चतुर्विधं भवत्यनाद्यनिधनं, साद्यनिधनं, सनिधनमनादि, सादिसनिधनमिति।</p> | |||
<p class="HindiText">= आयु के दो भेद हैं-भवायु और '''अद्धायु।''' द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा द्रव्यों का अद्धायु अनाद्यनिधन है अर्थात् द्रव्य अनादि काल से चला आया है और वह अनंत काल तक अपने स्वरूप से च्युत न होगा, इसीलिए उसको अनादि अनिधन भी कहते हैं। पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा जब विचार करते हैं तो अद्धायुके चार भेद होते हैं, वे इस प्रकार हैं-अनाद्यनिधन, साद्यनिधन, सनिधन अनादि, सादि सनिधनता।</p> | |||
<span class="GRef">भगवती आराधना / विजयोदयी टीका/ गाथा संख्या 28/85/16</span> <p class="PrakritText">भवधारणं भवायुर्भवः शरीरं तच्च ध्रियते आत्मनः आयुप्कोदयेन ततो भवधारणमायुष्काख्यं कर्म तदेव भवायुरित्युच्यते। तथा चोक्तम्-देहो भवोत्ति उच्चदि धारिज्जइ आउगणे य भवो सो। तो उच्चदि भवधारणमाउगकम्मं भवाउत्ति। इति आयुर्वशेनैव जीवो जायते जीवति च आयुष एवोदयेन। अन्यस्यायुष उदये सृति मृतिमुपैति पूर्वस्य चायुष्कस्य विनाशे। तथा चोक्तम्-आउगवसेण जीवो जायदि जीवदि य आउगस्सुदये। अण्णाउगोदये वा मरदि य पुव्वाउणासे वा ॥ इति ॥ अद्धा शब्देन काल इत्युच्यते। आउगशब्देन द्रव्यस्य स्थितः, तेन द्रव्याणां स्थितिकालः अद्धायुरित्युच्यते इति।</p> | |||
<p class="HindiText">= 1. भव धारण करना वह भवायु है। शरीर को भव कहते हैं। इस शरीर को आत्मा आयु का साहाय्य करके धारण करता है, अतः शरीर धारण कराने में समर्थ ऐसे आयुकर्म को भवायु कहते हैं। इस विषय में अन्य आचार्य ऐसा कहते हैं-देह को भव कहते हैं। वह भव आय कर्म से धारण किया जाता है, अतः भव धारण कराने वाले आयु कर्म को भवायु ऐसा कहा है, आयकर्म के उदय से ही उसका जीवन स्थिर है और जब प्रस्तुत आयु कर्म से भिन्न अन्य आयु कर्म का उदय होता है, तब यह जीव मरणावस्था को प्राप्त होता है। मरण समय में पूर्वायु का विनाश होता है। इस विषय में पूर्वाचार्य ऐसा कहते हैं-कि आयु कर्म के उदय से जीव उत्पन्न होता है और आयुकर्म के उदय से जीता है। अन्य आयु के उदय में मर जाता है। उस समय पूर्व आयु का विनाश हो जाता है। 2. '''अद्धा''' शब्द का `काल' ऐसा अर्थ है, और आयु शब्द से द्रव्य की स्थिति ऐसा अर्थ समझना चाहिए। द्रव्य का जो स्थितिकाल उस को '''अद्धायु''' कहते हैं।</p> | |||
<p class="HindiText">- इस विषय को विस्तार से समझने के लिये देखें [[ आयु]]।</p> | |||
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Latest revision as of 16:03, 10 December 2022
भगवती आराधना विजयोदयी टीका गाथा संख्या 25/85/16
तत्रायुर्द्विभेदं अद्धायुर्भवायुरिति च।...अर्थापेक्षया द्रव्याणामनाद्यनिधनं भवत्यद्धायुः। पर्यायार्थापेक्षया चतुर्विधं भवत्यनाद्यनिधनं, साद्यनिधनं, सनिधनमनादि, सादिसनिधनमिति।
= आयु के दो भेद हैं-भवायु और अद्धायु। द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा द्रव्यों का अद्धायु अनाद्यनिधन है अर्थात् द्रव्य अनादि काल से चला आया है और वह अनंत काल तक अपने स्वरूप से च्युत न होगा, इसीलिए उसको अनादि अनिधन भी कहते हैं। पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा जब विचार करते हैं तो अद्धायुके चार भेद होते हैं, वे इस प्रकार हैं-अनाद्यनिधन, साद्यनिधन, सनिधन अनादि, सादि सनिधनता।
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका/ गाथा संख्या 28/85/16
भवधारणं भवायुर्भवः शरीरं तच्च ध्रियते आत्मनः आयुप्कोदयेन ततो भवधारणमायुष्काख्यं कर्म तदेव भवायुरित्युच्यते। तथा चोक्तम्-देहो भवोत्ति उच्चदि धारिज्जइ आउगणे य भवो सो। तो उच्चदि भवधारणमाउगकम्मं भवाउत्ति। इति आयुर्वशेनैव जीवो जायते जीवति च आयुष एवोदयेन। अन्यस्यायुष उदये सृति मृतिमुपैति पूर्वस्य चायुष्कस्य विनाशे। तथा चोक्तम्-आउगवसेण जीवो जायदि जीवदि य आउगस्सुदये। अण्णाउगोदये वा मरदि य पुव्वाउणासे वा ॥ इति ॥ अद्धा शब्देन काल इत्युच्यते। आउगशब्देन द्रव्यस्य स्थितः, तेन द्रव्याणां स्थितिकालः अद्धायुरित्युच्यते इति।
= 1. भव धारण करना वह भवायु है। शरीर को भव कहते हैं। इस शरीर को आत्मा आयु का साहाय्य करके धारण करता है, अतः शरीर धारण कराने में समर्थ ऐसे आयुकर्म को भवायु कहते हैं। इस विषय में अन्य आचार्य ऐसा कहते हैं-देह को भव कहते हैं। वह भव आय कर्म से धारण किया जाता है, अतः भव धारण कराने वाले आयु कर्म को भवायु ऐसा कहा है, आयकर्म के उदय से ही उसका जीवन स्थिर है और जब प्रस्तुत आयु कर्म से भिन्न अन्य आयु कर्म का उदय होता है, तब यह जीव मरणावस्था को प्राप्त होता है। मरण समय में पूर्वायु का विनाश होता है। इस विषय में पूर्वाचार्य ऐसा कहते हैं-कि आयु कर्म के उदय से जीव उत्पन्न होता है और आयुकर्म के उदय से जीता है। अन्य आयु के उदय में मर जाता है। उस समय पूर्व आयु का विनाश हो जाता है। 2. अद्धा शब्द का `काल' ऐसा अर्थ है, और आयु शब्द से द्रव्य की स्थिति ऐसा अर्थ समझना चाहिए। द्रव्य का जो स्थितिकाल उस को अद्धायु कहते हैं।
- इस विषय को विस्तार से समझने के लिये देखें आयु।