योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 122: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: कर्म में जीव के स्वभाव का आच्छादन करने का उदाहरण - <p class="SanskritGatha"> जीवस्याच्छ...) |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
कर्म में जीव के स्वभाव का आच्छादन करने का उदाहरण - | <p class="Utthanika">कर्म में जीव के स्वभाव का आच्छादन करने का उदाहरण -</p> | ||
<p class="SanskritGatha"> | <p class="SanskritGatha"> | ||
जीवस्याच्छादकं कर्म निर्मलस्य मलीमसम् ।<br> | जीवस्याच्छादकं कर्म निर्मलस्य मलीमसम् ।<br> | ||
Line 6: | Line 5: | ||
</p> | </p> | ||
<p><b> अन्वय </b>:- शुद्धस्य भास्करस्य घन-मण्डलं इव मलीमसं कर्म निर्मलस्य जीवस्य आच्छादकं जायते । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- शुद्धस्य भास्करस्य घन-मण्डलं इव मलीमसं कर्म निर्मलस्य जीवस्य आच्छादकं जायते । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- जिसप्रकार घनमण्डल अर्थात् बादलों का समूह निर्मल सूर्य का आच्छादक हो जाता है, उसीप्रकार से निर्मल जीव के स्वभाव का, स्वभाव से मलीन कर्म आच्छादक होता है | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- जिसप्रकार घनमण्डल अर्थात् बादलों का समूह निर्मल सूर्य का आच्छादक हो जाता है, उसीप्रकार से निर्मल जीव के स्वभाव का, स्वभाव से मलीन कर्म आच्छादक होता है । </p> | ||
<p class="GathaLinks"> | <p class="GathaLinks"> | ||
[[योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 121 | पिछली गाथा]] | [[योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 121 | पिछली गाथा]] |
Latest revision as of 10:32, 15 May 2009
कर्म में जीव के स्वभाव का आच्छादन करने का उदाहरण -
जीवस्याच्छादकं कर्म निर्मलस्य मलीमसम् ।
जायते भास्करस्येव शुद्धस्य घन-मण्डलम् ।।१२२।।
अन्वय :- शुद्धस्य भास्करस्य घन-मण्डलं इव मलीमसं कर्म निर्मलस्य जीवस्य आच्छादकं जायते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार घनमण्डल अर्थात् बादलों का समूह निर्मल सूर्य का आच्छादक हो जाता है, उसीप्रकार से निर्मल जीव के स्वभाव का, स्वभाव से मलीन कर्म आच्छादक होता है ।