योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 125: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- अन्य-द्रव्य-परीणामं अन्य-द्रव्यं न प्रपद्यते, (अन्यथा) इयं स्व-अन्य-द्रव्य- व्यवस्था परस्य (था) कथं घटते ? (अर्थात् नैव घटते) । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- अन्य-द्रव्य-परीणामं अन्य-द्रव्यं न प्रपद्यते, (अन्यथा) इयं स्व-अन्य-द्रव्य- व्यवस्था परस्य (था) कथं घटते ? (अर्थात् नैव घटते) । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- अन्य द्रव्य का परिणाम अन्य द्रव्य को प्राप्त नहीं होता अर्थात् एक द्रव्य का परिणमन दूसरे द्रव्य के परिणमनरूप कभी नहीं होता, यदि ऐसा न माना जाय तो यह स्वद्रव्य- परद्रव्य की व्यवस्था कैसे बन सकती है ?अर्थात् नहीं बन सकती | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- अन्य द्रव्य का परिणाम अन्य द्रव्य को प्राप्त नहीं होता अर्थात् एक द्रव्य का परिणमन दूसरे द्रव्य के परिणमनरूप कभी नहीं होता, यदि ऐसा न माना जाय तो यह स्वद्रव्य- परद्रव्य की व्यवस्था कैसे बन सकती है ?अर्थात् नहीं बन सकती । </p> | ||
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प्रत्येक द्रव्य का परिणमन स्वतंत्र -
नान्यद्रव्य- परीणाममन्य- द्रव्यं प्रपद्यते ।
स्वान्य-द्रव्य-व्यवस्थेयं परस्य घटते कथम् ।।१२५।।
अन्वय :- अन्य-द्रव्य-परीणामं अन्य-द्रव्यं न प्रपद्यते, (अन्यथा) इयं स्व-अन्य-द्रव्य- व्यवस्था परस्य (था) कथं घटते ? (अर्थात् नैव घटते) ।
सरलार्थ :- अन्य द्रव्य का परिणाम अन्य द्रव्य को प्राप्त नहीं होता अर्थात् एक द्रव्य का परिणमन दूसरे द्रव्य के परिणमनरूप कभी नहीं होता, यदि ऐसा न माना जाय तो यह स्वद्रव्य- परद्रव्य की व्यवस्था कैसे बन सकती है ?अर्थात् नहीं बन सकती ।