योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 130: Difference between revisions
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सब स्वतंत्र एवं स्वाधीन - | <p class="Utthanika">सब स्वतंत्र एवं स्वाधीन -</p> | ||
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कषाया नोपयोगेभ्यो नोपयोगा: कषायत: ।<br> | कषाया नोपयोगेभ्यो नोपयोगा: कषायत: ।<br> | ||
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<p><b> अन्वय </b>:- उपयोगेभ्य: कषाया: न (संभवा:) । कषायत: उपयोगा: न (संभवा:)। नहि मूर्त-अमूर्तयो: परस्परं (उत्पाद:) संभव: अस्ति । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- उपयोगेभ्य: कषाया: न (संभवा:) । कषायत: उपयोगा: न (संभवा:)। नहि मूर्त-अमूर्तयो: परस्परं (उत्पाद:) संभव: अस्ति । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- ज्ञान-दर्शनरूप उपयोग से क्रोधादि कषाय उत्पन्न नहीं होते और कषायों से ज्ञानदश र्नरूप उपयोग उत्पन्न नहीं होते । अमूर्तिक द्रव्य से मूर्तिक द्रव्य उत्पन्न हो और मूर्तिक द्रव्य से अमूर्तिक द्रव्य उत्पन्न हो - ऐसी परस्पर उत्पत्ति संभव ही नहीं है । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- ज्ञान-दर्शनरूप उपयोग से क्रोधादि कषाय उत्पन्न नहीं होते और कषायों से ज्ञानदश र्नरूप उपयोग उत्पन्न नहीं होते । अमूर्तिक द्रव्य से मूर्तिक द्रव्य उत्पन्न हो और मूर्तिक द्रव्य से अमूर्तिक द्रव्य उत्पन्न हो - ऐसी परस्पर उत्पत्ति संभव ही नहीं है । </p> | ||
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Latest revision as of 10:34, 15 May 2009
सब स्वतंत्र एवं स्वाधीन -
कषाया नोपयोगेभ्यो नोपयोगा: कषायत: ।
न मूर्ताूर्तयोरस्ति संभवो हि परस्परम् ।।१३०।।
अन्वय :- उपयोगेभ्य: कषाया: न (संभवा:) । कषायत: उपयोगा: न (संभवा:)। नहि मूर्त-अमूर्तयो: परस्परं (उत्पाद:) संभव: अस्ति ।
सरलार्थ :- ज्ञान-दर्शनरूप उपयोग से क्रोधादि कषाय उत्पन्न नहीं होते और कषायों से ज्ञानदश र्नरूप उपयोग उत्पन्न नहीं होते । अमूर्तिक द्रव्य से मूर्तिक द्रव्य उत्पन्न हो और मूर्तिक द्रव्य से अमूर्तिक द्रव्य उत्पन्न हो - ऐसी परस्पर उत्पत्ति संभव ही नहीं है ।