योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 82: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- शस्त-अशस्तेन योगेन ये पुद्गला: (आत्म-प्रदेशेषु) समायान्ति, ते (पुद्गला:) कषाय-परिणामत: अष्ट-कर्मत्वं इच्छन्ति । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- मन-वचन-काय के शुभ अथवा अशुभ योग के निमित्त से जो पुद्गल आत्म- प्रदेशों में प्रवेश करते हैं, वे ही पुद्गल अर्थात् कार्माणवर्गणाएँ मोह-राग-द्वेषादि कषाय परिणामों के निमित्त से ज्ञानावरणादि अष्टकर्मरूप परिणमती हैं । </p> | ||
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कर्म के आस्रव एवं बन्ध में निमित्त का निर्देश -
योगेन ये समायान्ति शस्ताशस्तेन पुद्गला: ।
तेsष्टकर्मत्वमिच्छन्ति कषाय-परिणामत: ।।८२।।
अन्वय :- शस्त-अशस्तेन योगेन ये पुद्गला: (आत्म-प्रदेशेषु) समायान्ति, ते (पुद्गला:) कषाय-परिणामत: अष्ट-कर्मत्वं इच्छन्ति ।
सरलार्थ :- मन-वचन-काय के शुभ अथवा अशुभ योग के निमित्त से जो पुद्गल आत्म- प्रदेशों में प्रवेश करते हैं, वे ही पुद्गल अर्थात् कार्माणवर्गणाएँ मोह-राग-द्वेषादि कषाय परिणामों के निमित्त से ज्ञानावरणादि अष्टकर्मरूप परिणमती हैं ।