योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 87: Difference between revisions
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<p><b> सरलार्थ </b>:- अपने | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- यदि जीव अपने उपादान भाव से अर्थात् निजशक्ति से पुद्गलमय ज्ञानावरणादि आठों कर्मो को करेगा, तब कर्म के चेतनपने का निषेध निश्चय से कैसे किया जा सकता है? अर्थात् नहीं किया जा सकता, कर्मो में चेतनपना आ जायेगा । </p> | ||
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जीव, स्वभाव से कर्मो को करे तो आपत्ति -
जीव: करोति कर्माणि यद्युपादानभावत: ।
चेतनत्वं तदा नूनं कर्मणो वार्यते कथम् ।।८७।।
अन्वय :- यदि जीव: उपादानभावत: कर्माणि करोति तदा कर्मण: चेतनत्वं नूनं कथं वार्यते?
सरलार्थ :- यदि जीव अपने उपादान भाव से अर्थात् निजशक्ति से पुद्गलमय ज्ञानावरणादि आठों कर्मो को करेगा, तब कर्म के चेतनपने का निषेध निश्चय से कैसे किया जा सकता है? अर्थात् नहीं किया जा सकता, कर्मो में चेतनपना आ जायेगा ।