अगारी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(5 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef">तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 7/20</span> <p class="SanskritText">अणुव्रतोऽगारी ॥20॥ </p> | |||
<p>= अणुव्रती | <p class="HindiText">= अणुव्रती श्रावक अगारी है।</p> | ||
< | <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय /7/19/357</span> <p class="SanskritText">प्रतिश्रयार्थिभिः अंग्यते, इति अगारं वेश्म, तद्वानगारी। ...ननु चात्र विपर्ययोऽपि प्राप्नोति शून्यागारदेवकुलाद्यावासस्य मुनेरगारित्वम् अनिवृत्तविषयतृष्णस्य कुतश्चित्कारणाद् गृहं विमुच्य वने वसतोऽनगारत्वं च प्राप्नोति इति। नैष दोषः भावागारस्य विवक्षितत्वात्। चारित्रमोहोदये सत्यगारसंबंधं प्रत्यनिवृत्तः परिणामो भावागारमित्युच्यते। स यस्यास्त्यसावगारी वने वसन्नपि। गृहे वसन्नपि तदभावादनगार इति च भवति। </p> | ||
<p>= आश्रय चाहनेवाले जिसे अंगीकार करते हैं वह अगार है। अगार का अर्थ वेश्म अर्थात् घर है, जिसके घर है वह अगारी है। शंका-उपरोक्त लक्षण से विपरीत अर्थ भी प्राप्त होता है, क्योंकि शून्य घर व देव | <p class="HindiText">= आश्रय चाहनेवाले जिसे अंगीकार करते हैं वह अगार है। अगार का अर्थ वेश्म अर्थात् घर है, जिसके घर है वह अगारी है। शंका-उपरोक्त लक्षण से विपरीत अर्थ भी प्राप्त होता है, क्योंकि शून्य घर व देव मंदिर आदि में वास करनेवाले मुनि के अगारपना प्राप्त हो जायेगा? और जिसकी विषय-तृष्णा अभी निवृत्त नहीं हुई है ऐसे किसी व्यक्ति को किसी कारणवश घर छोड़कर वन में बसने से अनगारपना प्राप्त हो जायेगा? <b>उत्तर</b> - यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि यहाँ पर भावागार विवक्षित है। चारित्र मोहनीय का उदय होने पर जो परिणाम घर से निवृत्त नहीं है वह भावागार कहा जाता है। वह जिसके है वह वन में निवास करते हुए भी अगारी है और जिसके इस प्रकार का परिणाम नहीं है वह घर में बसते हुए भी अनगार है। </p> | ||
<p> | <p class="HindiText"><span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 7/19,1/546/24</span>, <span class="GRef">तत्त्वार्थसार अधिकार 4/79</span></p> | ||
<p class="HindiText"> विषय विस्तार देखें [[ श्रावक ]] </p> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ अगाढ़ | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ अगासदेव | अगला पृष्ठ ]] | [[ अगासदेव | अगला पृष्ठ ]] | ||
Line 13: | Line 15: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 13:57, 8 December 2022
तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 7/20
अणुव्रतोऽगारी ॥20॥
= अणुव्रती श्रावक अगारी है।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय /7/19/357
प्रतिश्रयार्थिभिः अंग्यते, इति अगारं वेश्म, तद्वानगारी। ...ननु चात्र विपर्ययोऽपि प्राप्नोति शून्यागारदेवकुलाद्यावासस्य मुनेरगारित्वम् अनिवृत्तविषयतृष्णस्य कुतश्चित्कारणाद् गृहं विमुच्य वने वसतोऽनगारत्वं च प्राप्नोति इति। नैष दोषः भावागारस्य विवक्षितत्वात्। चारित्रमोहोदये सत्यगारसंबंधं प्रत्यनिवृत्तः परिणामो भावागारमित्युच्यते। स यस्यास्त्यसावगारी वने वसन्नपि। गृहे वसन्नपि तदभावादनगार इति च भवति।
= आश्रय चाहनेवाले जिसे अंगीकार करते हैं वह अगार है। अगार का अर्थ वेश्म अर्थात् घर है, जिसके घर है वह अगारी है। शंका-उपरोक्त लक्षण से विपरीत अर्थ भी प्राप्त होता है, क्योंकि शून्य घर व देव मंदिर आदि में वास करनेवाले मुनि के अगारपना प्राप्त हो जायेगा? और जिसकी विषय-तृष्णा अभी निवृत्त नहीं हुई है ऐसे किसी व्यक्ति को किसी कारणवश घर छोड़कर वन में बसने से अनगारपना प्राप्त हो जायेगा? उत्तर - यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि यहाँ पर भावागार विवक्षित है। चारित्र मोहनीय का उदय होने पर जो परिणाम घर से निवृत्त नहीं है वह भावागार कहा जाता है। वह जिसके है वह वन में निवास करते हुए भी अगारी है और जिसके इस प्रकार का परिणाम नहीं है वह घर में बसते हुए भी अनगार है।
राजवार्तिक अध्याय 7/19,1/546/24, तत्त्वार्थसार अधिकार 4/79
विषय विस्तार देखें श्रावक