अगुप्ति भय: Difference between revisions
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<p>- देखें [[ भय ]]।</p> | <span class="GRef">(मूलाचार/53) </span> <span class="PrakritText">इहपरलोयत्ताणं अगुत्तिमरणं च वेयणाकिस्सि भया। </span>= <span class="HindiText">इहलोक भय, परलोक, अरक्षा, '''अगुप्ति''', मरण, वेदना और आकस्मिक भय ये सात भय हैं। <span class="GRef">( समयसार / आत्मख्याति/228/ कलश 155-160)</span>; <span class="GRef">( समयसार / तात्पर्यवृत्ति/228/309/9 )</span>; <span class="GRef">( पंचाध्यायी उत्तरार्ध/504-505)</span>; <span class="GRef">( दर्शनपाहुड़/2 पं.जयचंद)</span>; <span class="GRef">( राजवार्तिक हिंदी/6/24/517 )</span>।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText" name="3" id="3"><strong> सातों भयों के लक्षण</strong> <br /> | |||
<span class="GRef"> (समयसार/ पं. जयचंद/228/कलश 155-160)</span> इस भव में लोकों का डर रहता है कि ये लोग न मालूम मेरा क्या बिगाड़ करेंगे, ऐसा तो <strong>इहलोक</strong> का भय है, और परभव में न मालूम क्या होगा ऐसा भय रहना <strong>परलोक</strong> का भय है।155। जिसमें किसी का प्रवेश नहीं ऐसे गढ़, दुर्गादिक का नाम गुप्ति है उसमें यह प्राणी निर्भय होकर रहता है। जो गुप्त प्रदेश न हो, खुला हो, उसको अगुप्ति कहते हैं, वहाँ बैठने से जीव को जो भय उत्पन्न होता है उसको <strong>अगुप्ति भय</strong> कहते हैं।158। अकस्मात् भयानक पदार्थ से प्राणी को जो भय उत्पन्न होता है वह <strong>आकस्मिक भय</strong> है।</span><br /> | |||
<ul><li><p class="HindiText">- भय के बारे में विस्तार से जानने के लिये देखें [[ भय ]]।</li></ul></p> | |||
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Latest revision as of 22:14, 17 November 2023
(मूलाचार/53) इहपरलोयत्ताणं अगुत्तिमरणं च वेयणाकिस्सि भया। = इहलोक भय, परलोक, अरक्षा, अगुप्ति, मरण, वेदना और आकस्मिक भय ये सात भय हैं। ( समयसार / आत्मख्याति/228/ कलश 155-160); ( समयसार / तात्पर्यवृत्ति/228/309/9 ); ( पंचाध्यायी उत्तरार्ध/504-505); ( दर्शनपाहुड़/2 पं.जयचंद); ( राजवार्तिक हिंदी/6/24/517 )।
(समयसार/ पं. जयचंद/228/कलश 155-160) इस भव में लोकों का डर रहता है कि ये लोग न मालूम मेरा क्या बिगाड़ करेंगे, ऐसा तो इहलोक का भय है, और परभव में न मालूम क्या होगा ऐसा भय रहना परलोक का भय है।155। जिसमें किसी का प्रवेश नहीं ऐसे गढ़, दुर्गादिक का नाम गुप्ति है उसमें यह प्राणी निर्भय होकर रहता है। जो गुप्त प्रदेश न हो, खुला हो, उसको अगुप्ति कहते हैं, वहाँ बैठने से जीव को जो भय उत्पन्न होता है उसको अगुप्ति भय कहते हैं।158। अकस्मात् भयानक पदार्थ से प्राणी को जो भय उत्पन्न होता है वह आकस्मिक भय है।
- भय के बारे में विस्तार से जानने के लिये देखें भय ।