योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 90: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
कर्म एवं जीव के विभाव में परस्पर निमित्तपना - | <p class="Utthanika">कर्म एवं जीव के विभाव में परस्पर निमित्तपना -</p> | ||
<p class="SanskritGatha"> | <p class="SanskritGatha"> | ||
सरागं जीवमाश्रित्य कर्मत्वं यान्ति पुद्गला:<br> | सरागं जीवमाश्रित्य कर्मत्वं यान्ति पुद्गला:<br> | ||
Line 6: | Line 5: | ||
</p> | </p> | ||
<p><b> अन्वय </b>:- पुद्गला: सरागं जीवं आश्रित्य कर्मत्वं यान्ति (तथा एव) जीव: अपि कर्माणि आश्रित्य सरागत्वं प्रपद्यते । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- पुद्गला: सरागं जीवं आश्रित्य कर्मत्वं यान्ति (तथा एव) जीव: अपि कर्माणि आश्रित्य सरागत्वं प्रपद्यते । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- पुद्गल अर्थात् कार्माणवर्गणायें सरागी जीव का निमित्त पाकर कर्मपने को प्राप्त होती हैं और जीव भी कर्मो का निमित्त पाकर विभावभावरूप परिणाम को प्राप्त होता है । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- पुद्गल अर्थात् कार्माणवर्गणायें सरागी जीव का निमित्त पाकर कर्मपने को प्राप्त होती हैं और जीव भी कर्मो का निमित्त पाकर विभावभावरूप परिणाम को प्राप्त होता है । </p> | ||
<p class="GathaLinks"> | <p class="GathaLinks"> | ||
[[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 89 | पिछली गाथा]] | [[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 89 | पिछली गाथा]] |
Latest revision as of 10:20, 15 May 2009
कर्म एवं जीव के विभाव में परस्पर निमित्तपना -
सरागं जीवमाश्रित्य कर्मत्वं यान्ति पुद्गला:
कर्माण्याश्रित्य जीवोsपि सरागत्वं प्रपद्यते ।।९०।।
अन्वय :- पुद्गला: सरागं जीवं आश्रित्य कर्मत्वं यान्ति (तथा एव) जीव: अपि कर्माणि आश्रित्य सरागत्वं प्रपद्यते ।
सरलार्थ :- पुद्गल अर्थात् कार्माणवर्गणायें सरागी जीव का निमित्त पाकर कर्मपने को प्राप्त होती हैं और जीव भी कर्मो का निमित्त पाकर विभावभावरूप परिणाम को प्राप्त होता है ।