योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 97: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: गुणस्थान संबंधी विभिन्न मान्यता - <p class="SanskritGatha"> देहचेतनयोरैक्यं मन्यमानै...) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
गुणस्थान संबंधी विभिन्न मान्यता - | <p class="Utthanika">गुणस्थान संबंधी विभिन्न मान्यता -</p> | ||
<p class="SanskritGatha"> | <p class="SanskritGatha"> | ||
देहचेतनयोरैक्यं मन्यमानैर्विोहितै: ।<br> | देहचेतनयोरैक्यं मन्यमानैर्विोहितै: ।<br> | ||
Line 6: | Line 5: | ||
</p> | </p> | ||
<p><b> अन्वय </b>:- देहचेतनयो: ऐक्यं मन्यमानै: विमोहितै: एते (त्रयोदश-गुणा:) जीवा: निगद्यन्ते; न विवेक-विशारदै: । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- देहचेतनयो: ऐक्यं मन्यमानै: विमोहितै: एते (त्रयोदश-गुणा:) जीवा: निगद्यन्ते; न विवेक-विशारदै: । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- शरीर और आत्मा इन दोनों को एक माननेवाले मोहीजन गुणस्थानों को जीव कहते हैं अर्थात् मानते हैं; परन्तु भेदविज्ञान में निपुण विवेकी जन गुणस्थानों को पुद्गलरूप अजीव बतलाते हैं । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- शरीर और आत्मा इन दोनों को एक माननेवाले मोहीजन गुणस्थानों को जीव कहते हैं अर्थात् मानते हैं; परन्तु भेदविज्ञान में निपुण विवेकी जन गुणस्थानों को पुद्गलरूप अजीव बतलाते हैं । </p> | ||
<p class="GathaLinks"> | <p class="GathaLinks"> | ||
[[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 95 | पिछली गाथा]] | [[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 95 | पिछली गाथा]] |
Latest revision as of 10:22, 15 May 2009
गुणस्थान संबंधी विभिन्न मान्यता -
देहचेतनयोरैक्यं मन्यमानैर्विोहितै: ।
एते जीवा निगद्यन्ते न विवेक-विशारदै: ।।९७।।
अन्वय :- देहचेतनयो: ऐक्यं मन्यमानै: विमोहितै: एते (त्रयोदश-गुणा:) जीवा: निगद्यन्ते; न विवेक-विशारदै: ।
सरलार्थ :- शरीर और आत्मा इन दोनों को एक माननेवाले मोहीजन गुणस्थानों को जीव कहते हैं अर्थात् मानते हैं; परन्तु भेदविज्ञान में निपुण विवेकी जन गुणस्थानों को पुद्गलरूप अजीव बतलाते हैं ।