अपकर्ष: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(10 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef">गोम्मट्टसार जीवकांड /जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 518/913/17 </span><p class="SanskritText">भुज्यमानायुरपकृष्यापकृष्य परभवायुर्बध्यते इत्यपकर्षः।</p> | |||
<p>= भुज्यमान | <p class="HindiText">= भुज्यमान आयु को घटा-घटाकर आगामी परभव की आयु को बाँधै सो अपकर्ष कहिये (अर्थात् भुज्यमान आयु का 2/3 भाग बीत जाने पर आयुबंध के योग्य प्रथम अवसर आता है। यदि वहाँ न बँधे तो शेष 1/3 आयुका पुनः 2/3 भाग बीत जाने पर दूसरा अवसर आता है। इस प्रकार आयु के अंत पर्यंत आठ अवसर आते हैं। इन्हें आठ अपकर्ष कहते हैं।</p> | ||
<p>(विशेष देखें [[ आयु#4 | आयु - 4]])</p> | <p class="HindiText">(विशेष देखें [[ आयु#4 | आयु - 4]])</p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 11: | Line 12: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 08:56, 24 December 2022
गोम्मट्टसार जीवकांड /जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 518/913/17
भुज्यमानायुरपकृष्यापकृष्य परभवायुर्बध्यते इत्यपकर्षः।
= भुज्यमान आयु को घटा-घटाकर आगामी परभव की आयु को बाँधै सो अपकर्ष कहिये (अर्थात् भुज्यमान आयु का 2/3 भाग बीत जाने पर आयुबंध के योग्य प्रथम अवसर आता है। यदि वहाँ न बँधे तो शेष 1/3 आयुका पुनः 2/3 भाग बीत जाने पर दूसरा अवसर आता है। इस प्रकार आयु के अंत पर्यंत आठ अवसर आते हैं। इन्हें आठ अपकर्ष कहते हैं।
(विशेष देखें आयु - 4)