अशोक वृक्ष: Difference between revisions
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<span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/4/915-919 </span><span class="PrakritGatha">जेसिं तरूणमूले उप्पण्ण जाण केवलं णाणं। उपसहप्पहुदिजिणाणं ते चिय असोयरुक्ख त्ति।915। णग्गोहसत्तपण्णं सालं सरलं पियंगु तं चेव। सिरिसं णागतरू वि य अक्खा धूली पलास तेंदूवं।916। पाडलजंबूपिप्पलदहिवण्णो णंदितिलयचूदा य। कंकल्लि चंपबउलं मेसयसिंगं धवं सालं।917। सोहंति असोयतरू पल्लवकुसुमाणदाहि साहाहिं। लंबंतमालदामा घंटाजालादिरमणिज्जा।918। णियणियजिणउदएणं बारसगुणिदेहिं सरिसउच्छेहा। उसहजिणप्पहुदीणं असोयरुक्खा वियरंति।919।</span> = <span class="HindiText">ऋषभ आदि तीर्थंकरों को जिन वृक्षों के नीचे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है (देखें [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर - 5]]) वे ही अशोकवृक्ष हैं।915। न्यग्रोध, सप्तपर्ण, साल, सरल, प्रियंगु, शिरीष, नागवृक्ष, अक्ष (बहेड़ा), धूलिपलाश, तेंदू, पाटल, जंबू, पीपल, दधिपर्ण, नंदी, तिलक, आम्र, कंकेलि (अशोक), चंपक, बकुल, मेषशृंग, धव और शाल ये 24 तीर्थंकरों के 24 अशोकवृक्ष हैं, जो लटकती हुई मालाओं से युक्त और घंटासमूहादिक से रमणीक होते हुए पल्लव एवं पुष्पों से झुकी हुई शाखाओं से शोभायमान होते हैं।916-918। ऋषभादि तीर्थंकरों के उपर्युक्त चौबीस अशोकवृक्ष बारह से गुणित अपने-अपने जिनकी (तीर्थंकर की) ऊँचाई से युक्त होते हुए शोभायमान हैं।919। प्रत्येक तीर्थंकर की ऊँचाई जानने के लिए देखें [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर - 5]]। </span></p> | |||
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अशोकवृक्ष निर्देश
तिलोयपण्णत्ति/4/915-919 जेसिं तरूणमूले उप्पण्ण जाण केवलं णाणं। उपसहप्पहुदिजिणाणं ते चिय असोयरुक्ख त्ति।915। णग्गोहसत्तपण्णं सालं सरलं पियंगु तं चेव। सिरिसं णागतरू वि य अक्खा धूली पलास तेंदूवं।916। पाडलजंबूपिप्पलदहिवण्णो णंदितिलयचूदा य। कंकल्लि चंपबउलं मेसयसिंगं धवं सालं।917। सोहंति असोयतरू पल्लवकुसुमाणदाहि साहाहिं। लंबंतमालदामा घंटाजालादिरमणिज्जा।918। णियणियजिणउदएणं बारसगुणिदेहिं सरिसउच्छेहा। उसहजिणप्पहुदीणं असोयरुक्खा वियरंति।919। = ऋषभ आदि तीर्थंकरों को जिन वृक्षों के नीचे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है (देखें तीर्थंकर - 5) वे ही अशोकवृक्ष हैं।915। न्यग्रोध, सप्तपर्ण, साल, सरल, प्रियंगु, शिरीष, नागवृक्ष, अक्ष (बहेड़ा), धूलिपलाश, तेंदू, पाटल, जंबू, पीपल, दधिपर्ण, नंदी, तिलक, आम्र, कंकेलि (अशोक), चंपक, बकुल, मेषशृंग, धव और शाल ये 24 तीर्थंकरों के 24 अशोकवृक्ष हैं, जो लटकती हुई मालाओं से युक्त और घंटासमूहादिक से रमणीक होते हुए पल्लव एवं पुष्पों से झुकी हुई शाखाओं से शोभायमान होते हैं।916-918। ऋषभादि तीर्थंकरों के उपर्युक्त चौबीस अशोकवृक्ष बारह से गुणित अपने-अपने जिनकी (तीर्थंकर की) ऊँचाई से युक्त होते हुए शोभायमान हैं।919। प्रत्येक तीर्थंकर की ऊँचाई जानने के लिए देखें तीर्थंकर - 5।
अन्य वृक्षों की जानकारी के लिए देखें वृक्ष - 2।