आजीवक मत: Difference between revisions
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<p>देखें [[ | <p class="HindiText"> इस मत के अनुसार समस्त प्राणी बिना कारण अच्छे-बुरे होते हैं। संसार में शक्ति सामर्थ्य आदि पदार्थ नहीं हैं। जीव अपने अदृष्ट के प्रभाव से यहाँ-वहाँ संचार करते हैं। उन्हें जो सुख-दुःख भोगने पड़ते हैं, वे सब उनके अदृष्ट पर निर्भर हैं। 14 लाख प्रधान जन्म, 500 प्रकार के संपूर्ण और असंपूर्ण कर्म, 62 प्रकार के जीवनपथ, 8 प्रकार की जन्म की तहें, 4900 प्रकार के कर्म, 4900 भ्रमण करनेवाले संन्यासी, 3000 नरक और 84 लाख काल हैं। इन कालों के भीतर पंडित और मूर्ख सब के कष्टों का अंत हो जाता है। ज्ञानी और पंडित कर्म के हाथ से छुटकारा नहीं पा सकते। जन्म की गति से सुख और दुःख का परिवर्तन होता है। उनमें ह्रास और वृद्धि होती है।<br> | ||
इस मिथ्यामत को चलाने वाले पूरनकश्यप के सम्बन्ध में जानने हेतु देखें [[ पूरनकश्यप ]] व त्रैराशिवाद ।</p> | |||
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Latest revision as of 17:08, 18 February 2023
इस मत के अनुसार समस्त प्राणी बिना कारण अच्छे-बुरे होते हैं। संसार में शक्ति सामर्थ्य आदि पदार्थ नहीं हैं। जीव अपने अदृष्ट के प्रभाव से यहाँ-वहाँ संचार करते हैं। उन्हें जो सुख-दुःख भोगने पड़ते हैं, वे सब उनके अदृष्ट पर निर्भर हैं। 14 लाख प्रधान जन्म, 500 प्रकार के संपूर्ण और असंपूर्ण कर्म, 62 प्रकार के जीवनपथ, 8 प्रकार की जन्म की तहें, 4900 प्रकार के कर्म, 4900 भ्रमण करनेवाले संन्यासी, 3000 नरक और 84 लाख काल हैं। इन कालों के भीतर पंडित और मूर्ख सब के कष्टों का अंत हो जाता है। ज्ञानी और पंडित कर्म के हाथ से छुटकारा नहीं पा सकते। जन्म की गति से सुख और दुःख का परिवर्तन होता है। उनमें ह्रास और वृद्धि होती है।
इस मिथ्यामत को चलाने वाले पूरनकश्यप के सम्बन्ध में जानने हेतु देखें पूरनकश्यप व त्रैराशिवाद ।