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| <p id="1">(1) रत्नप्रभा आदि पृथिवियों के पटलों के मध्य मे स्थित बिल । इन बिलों की चारों दिशाओं और विदिशाओं में श्रेणीबद्ध बिल होते हैं । आगे ये बिल त्रिकोण तथा तीन द्वारों से युक्त होते हैं । इन्हें इन्द्रक निगोद भी कहा गया है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.86, 103, 352 </span></p>
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| <p id="2">(2) अच्युतेन्द्र के 159 विमानों मे एक विमान । <span class="GRef"> महापुराण 10.186-187 </span></p>
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| | #REDIRECT [[इंद्रक]] |
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| </noinclude>
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| [[Category: पुराण-कोष]]
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| [[Category: इ]]
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