गुप्त संघ: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(3 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
देखें [[ इतिहास# | <span class="HindiText">भगवान् वीर के निर्वाण के पश्चात् गौतम गणधर से लेकर आचार्य अर्हद्बली तक उनका मूलसंघ अविच्छिन्न रूप से चलता रहा। आचार्य अर्हद्बली ने पंचवर्षीय युगप्रतिक्रमण के अवसर परमहिमानगर जिला सतारा में एक महान यति सम्मेलन किया, जिसमें सौ योजन तक के साधु सम्मिलित हुए। उस समय उन साधुओं में अपने अपने शिष्यों के प्रति कुछ पक्षपात की बू देखकर उन्होंने मूलसंघ की सत्ता समाप्त करके उसे पृथक् पृथक् नामों वाले अनेक अवान्तर संघों में विभाजित कर दिया जिसमें से कुछ के नाम ये हैं - 1. नन्दि, 2. वृषभ, 3. सिंह, 4. देव, 5. काष्ठा, 6. वीर, 7. अपराजित, 8. पंचस्तूप, 9. सेन, 10. भद्र, 11. गुणधर, 12. '''गुप्त''', 13. सिंह, 14. चन्द्र इत्यादि</span><span class="GRef">(धवला 1/ प्रस्तावना 14/H.L.Jain)</span>।<br> | ||
<span class="HindiText">इनके अतिरिक्त भी अनेकों अवान्तर संघ भी भिन्न भिन्न समयोंपर परिस्थितिवश उत्पन्न होते रहे। धीरे धीरे इनमें से कुछ संघों में शिथिलाचार आता चला गया, जिनके कारण वे जैनाभासी कहलाने लगे (इनमें छः प्रसिद्ध हैं - 1. श्वेताम्बर, 2. गोपुच्छ या काष्ठा, 3. द्रविड़, 4. यापनीय या गोप्य, 5. निष्पिच्छ या माथुर और 6. भिल्लक)।</span> | |||
<span class="HindiText">देखें [[ इतिहास#4.4 | इतिहास - 4.4]]।</span> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 8: | Line 11: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: ग]] | [[Category: ग]] | ||
[[Category: इतिहास]] |
Latest revision as of 22:20, 17 November 2023
भगवान् वीर के निर्वाण के पश्चात् गौतम गणधर से लेकर आचार्य अर्हद्बली तक उनका मूलसंघ अविच्छिन्न रूप से चलता रहा। आचार्य अर्हद्बली ने पंचवर्षीय युगप्रतिक्रमण के अवसर परमहिमानगर जिला सतारा में एक महान यति सम्मेलन किया, जिसमें सौ योजन तक के साधु सम्मिलित हुए। उस समय उन साधुओं में अपने अपने शिष्यों के प्रति कुछ पक्षपात की बू देखकर उन्होंने मूलसंघ की सत्ता समाप्त करके उसे पृथक् पृथक् नामों वाले अनेक अवान्तर संघों में विभाजित कर दिया जिसमें से कुछ के नाम ये हैं - 1. नन्दि, 2. वृषभ, 3. सिंह, 4. देव, 5. काष्ठा, 6. वीर, 7. अपराजित, 8. पंचस्तूप, 9. सेन, 10. भद्र, 11. गुणधर, 12. गुप्त, 13. सिंह, 14. चन्द्र इत्यादि(धवला 1/ प्रस्तावना 14/H.L.Jain)।
इनके अतिरिक्त भी अनेकों अवान्तर संघ भी भिन्न भिन्न समयोंपर परिस्थितिवश उत्पन्न होते रहे। धीरे धीरे इनमें से कुछ संघों में शिथिलाचार आता चला गया, जिनके कारण वे जैनाभासी कहलाने लगे (इनमें छः प्रसिद्ध हैं - 1. श्वेताम्बर, 2. गोपुच्छ या काष्ठा, 3. द्रविड़, 4. यापनीय या गोप्य, 5. निष्पिच्छ या माथुर और 6. भिल्लक)।
देखें इतिहास - 4.4।