चित्रचूल: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(4 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p id="1"> (1) | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) धातकीखंड द्वीप के पूर्व भरतक्षेत्र में स्थित विजया की दक्षिणश्रेणी के नित्यालोक नगर का राजा । इसकी मनोहारी नाम की रानी थी । इन दोनों के सात पुत्र थे और युगल रूप से उत्पन्न गरुड़कांत-सेनकांत, गरुड़ध्वज-गरुड़वाहन, मणिचूल और हिमचूल । ये छह पुत्र थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_33#131|हरिवंशपुराण - 33.131-133]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) | <p id="2" class="HindiText">(2) जंबूद्वीप के सुकच्छ देश में स्थित विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के किन्नरगीत नगर का राजा । इसकी पुत्री सुकांता इसी श्रेणी के शुक्रप्रभ नगर के राजा इंद्रदत्त के पुत्र वायुवेग विद्याधर को दी गयी थी । <span class="GRef"> महापुराण 63.91-93 </span></p> | ||
<p id="3">(3) एक विद्याधर । यह अपनी बहिन | <p id="3" class="HindiText">(3) एक विद्याधर । यह अपनी बहिन वसंतसेना के पास पहुंचकर बहनोई कनकशांति मुनिराज पर पूर्व जन्म के बंधे वैर के कारण उपसर्ग करने के लिए तत्पर हो गया था । वह उपसर्ग नहीं कर सका और मुनि को केवलज्ञान हो गया । मुनि से इसने क्षमा मांगी । <span class="GRef"> महापुराण 63. 125-128 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 12: | Line 12: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: च]] | [[Category: च]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
(1) धातकीखंड द्वीप के पूर्व भरतक्षेत्र में स्थित विजया की दक्षिणश्रेणी के नित्यालोक नगर का राजा । इसकी मनोहारी नाम की रानी थी । इन दोनों के सात पुत्र थे और युगल रूप से उत्पन्न गरुड़कांत-सेनकांत, गरुड़ध्वज-गरुड़वाहन, मणिचूल और हिमचूल । ये छह पुत्र थे । हरिवंशपुराण - 33.131-133
(2) जंबूद्वीप के सुकच्छ देश में स्थित विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के किन्नरगीत नगर का राजा । इसकी पुत्री सुकांता इसी श्रेणी के शुक्रप्रभ नगर के राजा इंद्रदत्त के पुत्र वायुवेग विद्याधर को दी गयी थी । महापुराण 63.91-93
(3) एक विद्याधर । यह अपनी बहिन वसंतसेना के पास पहुंचकर बहनोई कनकशांति मुनिराज पर पूर्व जन्म के बंधे वैर के कारण उपसर्ग करने के लिए तत्पर हो गया था । वह उपसर्ग नहीं कर सका और मुनि को केवलज्ञान हो गया । मुनि से इसने क्षमा मांगी । महापुराण 63. 125-128