| <p id="1"> (1) दो सुर्यों से विभूषित आद्य द्वीप । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.1, </span>यह मध्यलोक के मध्यभाग में स्थित चक्राकार, लवणसमुद्र से आवृत, एक लाख योजन विस्तृत, मेरु पर्वत और चौतीस क्षेत्रों (विदेह के बत्तीस एक भरत, एक ऐरावत) से युक्त है । <span class="GRef"> महापुराण 4.48-49, 5.187, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3.32-33, 37-39, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2. 1, 5-4-7, 10. 177 </span>इसमें छ: भोगभूमियाँ, आठ जिनालय, अड़सठ भवन (चौतीसों क्षेत्रों में दो-दो (और चौतीस सिंहासन हैं । भरत और ऐरावत क्षेत्र में रजतमय दो विजयार्ध पर्वत है । इन भोगभूमियों में ही देवकुरु और उत्तरकुरु है । इस द्वीप में स्थित भरतक्षेत्र की दक्षिणदिशा मै जिनालयों से युक्त राक्षसद्वीप, महाविदेहक्षेत्र की पश्चिम दिशा में किन्नरद्वीप ऐरावत क्षेत्र की उत्तर दिशा में गन्धर्व द्वीप स्थित है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 3.40-45 </span>इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल प्रमाण तथा घनाकार क्षेत्र सात सौ नब्बे करोड़ छप्पन लाख चौरानवे हजार एक सौ पचास योजन माना गया है । इसमें कुल सात क्षेत्र, एक मेरु, दो कुरु, जम्बू और शाल्मालि नामक दो वृक्ष, छ: कुलाचल, कुलाचलों पर स्थित छ: महासरोवर, चौदह महानदियां, बारह विभंगा नदियां, बीस वक्षारगिरि, चौतीस राजधानी, चौतीस रूप्याचल, चौतीस वृषभाचल, अड़सठ गुहाएं, चार गोलाकार नाभिगिरि और तीन हजार सात सौ चालीस विद्याधर राजाओं के नगर विद्यमान हैं । भरतक्षेत्र इसके दक्षिण में और ऐरावत क्षेत्र उत्तर में है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.2-13 </span></p>
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