दर्शनमोह: Difference between revisions
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<p> मोहनीय कर्म का आद्य भेद । केवली, श्रुत, संघ, धर्म तथा देव का अवर्णवाद करने से इस कर्म का आस्रव होता है । इससे सम्यग्दर्शन का घात होता है । <span class="GRef"> महापुराण 9. 117, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58. 96 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> मोहनीय कर्म का आद्य भेद । केवली, श्रुत, संघ, धर्म तथा देव का अवर्णवाद करने से इस कर्म का आस्रव होता है । इससे सम्यग्दर्शन का घात होता है । <span class="GRef"> महापुराण 9. 117, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#96|हरिवंशपुराण - 58.96]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
देखें मोहनीय ।
पुराणकोष से
मोहनीय कर्म का आद्य भेद । केवली, श्रुत, संघ, धर्म तथा देव का अवर्णवाद करने से इस कर्म का आस्रव होता है । इससे सम्यग्दर्शन का घात होता है । महापुराण 9. 117, हरिवंशपुराण - 58.96