पात्रकेसरी: Difference between revisions
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<li> श्लोकवार्तिककार आ. | <li> श्लोकवार्तिककार आ. विद्यानंदि (ई.775-840) की उपाधि। (देखें [[ विद्यानंदि ]])। (जैन हितैषी, पं. नाथूराम)। </li> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- आप ब्राह्माण कुल से थे। न्यायशास्त्र में पारंगत थे। आचार्य विद्यानंदि की भाँति आप भी समंतभद्र रचित देवागमस्तोत्र सुनने से ही जैनानुयायी हो गये थे। आपने त्रिलक्षण कदर्थन, तथा जिनेंद्रगुणस्तुति (पात्रकेसरी स्तोत्र) ये दो ग्रंथ लिखे। समय-पूज्यपाद के उत्तरवर्ती और अकलंकदेव से पूर्ववर्ती हैं - ई.श. 6 (देखें इतिहास - 7.1); (तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा /2/238-240)।
- श्लोकवार्तिककार आ. विद्यानंदि (ई.775-840) की उपाधि। (देखें विद्यानंदि )। (जैन हितैषी, पं. नाथूराम)।
पुराणकोष से
जिनसेन के पूर्ववर्ती एक आचार्य । महापुराण में कवि ने भट्टाकलंक और श्रीपाल के बाद इनका स्मरण किया है । महापुराण 1. 53