उद्यवन: Difference between revisions
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<span class="GRef">भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 2/14/15</span><p class="SanskritText"> उत्कृष्टं यवनं उद्यवनं। .......तत्कथं दर्शनादिभिरात्मनो मिश्रणमिति। असकृद्दर्शनादिपरिणतिरुद्यवनं।</p> | |||
<p class="HindiText">= उत्कृष्ट मिश्रण होना उद्यवन है, अर्थात् आत्मा की सम्यग्दर्शनादि परिणति होना उद्यवन शब्दका अर्थ है। प्रश्न-सम्यग्दर्शनादि तो आत्मा से अभिन्न हैं, तब उनका उसके साथ सम्मिश्रमण होना कैसे कहा जा सकता है। उत्तर-यहाँ पर उद्यवन शब्द का सामान्य संबंध ऐसा अर्थ समझना चाहिए। अर्थात् बारंबार सम्यग्दर्शनादि गुणों से आत्मा का परिणत हो जाना उद्यवन शब्द का अर्थ है।</p> | |||
<span class="GRef">अनगार धर्मामृत अधिकार 1/96/104 </span> <p class="SanskritText"> दृष्ट्यादीनां मलनिरसनं द्योतनं तेषु शश्वद्,-वृत्तिः स्वस्योद्द्यवनमुदितं धारणं निस्पृहस्य।</p> | |||
<p class="HindiText">= दर्शन ज्ञान चारित्र और तप इन चारों आराधनाओं में लगने वाले मलों के दूर करने को उद्योत कहते हैं। इन्हीं में इनके आराधक के नित्य एकतान होकर रहने को उद्यवन कहते हैं।</p> | |||
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भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 2/14/15
उत्कृष्टं यवनं उद्यवनं। .......तत्कथं दर्शनादिभिरात्मनो मिश्रणमिति। असकृद्दर्शनादिपरिणतिरुद्यवनं।
= उत्कृष्ट मिश्रण होना उद्यवन है, अर्थात् आत्मा की सम्यग्दर्शनादि परिणति होना उद्यवन शब्दका अर्थ है। प्रश्न-सम्यग्दर्शनादि तो आत्मा से अभिन्न हैं, तब उनका उसके साथ सम्मिश्रमण होना कैसे कहा जा सकता है। उत्तर-यहाँ पर उद्यवन शब्द का सामान्य संबंध ऐसा अर्थ समझना चाहिए। अर्थात् बारंबार सम्यग्दर्शनादि गुणों से आत्मा का परिणत हो जाना उद्यवन शब्द का अर्थ है।
अनगार धर्मामृत अधिकार 1/96/104
दृष्ट्यादीनां मलनिरसनं द्योतनं तेषु शश्वद्,-वृत्तिः स्वस्योद्द्यवनमुदितं धारणं निस्पृहस्य।
= दर्शन ज्ञान चारित्र और तप इन चारों आराधनाओं में लगने वाले मलों के दूर करने को उद्योत कहते हैं। इन्हीं में इनके आराधक के नित्य एकतान होकर रहने को उद्यवन कहते हैं।