मिथ्योपदेश: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(4 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> सत्याणुव्रत का प्रथम अतिचार― किसी को धोखा देना तथा स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करने वाली क्रियाओं में दूसरों की अन्यथा प्रवृत्ति कराना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58. 166 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सत्याणुव्रत का प्रथम अतिचार― किसी को धोखा देना तथा स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करने वाली क्रियाओं में दूसरों की अन्यथा प्रवृत्ति कराना । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#166|हरिवंशपुराण - 58.166]] </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ मिथ्यादृष्टि | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ मिश्रकेशी | अगला पृष्ठ ]] | [[ मिश्रकेशी | अगला पृष्ठ ]] | ||
Line 10: | Line 10: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
सत्याणुव्रत का प्रथम अतिचार― किसी को धोखा देना तथा स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करने वाली क्रियाओं में दूसरों की अन्यथा प्रवृत्ति कराना । हरिवंशपुराण - 58.166