वक्षारगिरि: Difference between revisions
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<p> विदेहक्षेत्र के अनादिनिधन सोलह पर्वत । इनमें चित्रकूट, पद्मकूट, नलिन और एकशैल ये चार पूर्वविदेह में नील पर्वत और सीता नदी के मध्य | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> विदेहक्षेत्र के अनादिनिधन सोलह पर्वत । इनमें चित्रकूट, पद्मकूट, नलिन और एकशैल ये चार पूर्वविदेह में नील पर्वत और सीता नदी के मध्य लंबे स्थित हैं । त्रिकूट, वैश्रवण, अंजन और आत्मांजन ये चार पर्वत पूर्वविदेह में सीता नदी और निषध कुलाचल का स्पर्श करते हैं । श्रद्धावान्, विजयावान्, आशीर्विष और सुखावह ये चार पश्चिम विदेहक्षेत्र में सीतोदा नदी तथा निषध पर्वत का स्पर्श करते हैं और चंद्रमाल, सूर्यमाल, नागमाल तथा मेघवाल ये चार पश्चिम विदेहक्षेत्र में नील और सीतोदा के मध्य स्थित है । इन समस्त पर्वतों की ऊँचाई नदी तट पर पांच सौ योजन और अन्यत्र चार सौ योजन है । प्रत्येक के शिखर पर चार-चार कूट है । कुलाचलों के समीपवर्ती कुट्टी पर दिक्कुमारी देवियाँ रहती हैं । नदी के समीपवर्ती कूटों पर जिनेंद्र के चैत्यालय है और बीच के कूटों पर व्यंतर देवों के क्रीडागृह बने हुए हैं । <span class="GRef"> महापुराण 63. 201-205, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#228|हरिवंशपुराण - 5.228-235]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
विदेहक्षेत्र के अनादिनिधन सोलह पर्वत । इनमें चित्रकूट, पद्मकूट, नलिन और एकशैल ये चार पूर्वविदेह में नील पर्वत और सीता नदी के मध्य लंबे स्थित हैं । त्रिकूट, वैश्रवण, अंजन और आत्मांजन ये चार पर्वत पूर्वविदेह में सीता नदी और निषध कुलाचल का स्पर्श करते हैं । श्रद्धावान्, विजयावान्, आशीर्विष और सुखावह ये चार पश्चिम विदेहक्षेत्र में सीतोदा नदी तथा निषध पर्वत का स्पर्श करते हैं और चंद्रमाल, सूर्यमाल, नागमाल तथा मेघवाल ये चार पश्चिम विदेहक्षेत्र में नील और सीतोदा के मध्य स्थित है । इन समस्त पर्वतों की ऊँचाई नदी तट पर पांच सौ योजन और अन्यत्र चार सौ योजन है । प्रत्येक के शिखर पर चार-चार कूट है । कुलाचलों के समीपवर्ती कुट्टी पर दिक्कुमारी देवियाँ रहती हैं । नदी के समीपवर्ती कूटों पर जिनेंद्र के चैत्यालय है और बीच के कूटों पर व्यंतर देवों के क्रीडागृह बने हुए हैं । महापुराण 63. 201-205, हरिवंशपुराण - 5.228-235