अंगारिणी: Difference between revisions
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<p> <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#51|हरिवंशपुराण - 22.51-73]] </span><div class="HindiText">का भावार्थ–भगवान् ऋषभदेव से नमि और विनमि द्वारा राज्य की याचना करने पर धरणेंद्र ने अनेक देवों के संग आकर उन दोनों को अपनी देवियों से कुछ विद्याएँ दिलाकर संतुष्ट किया। उनमें से एक विद्या का नाम '''अंगारिणी,''' हैं। <span class="GRef">( महापुराण/7/34-334 )</span>। <br /> | |||
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<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> दिति और अदिति द्वारा नमि ओर बिनमि को प्रदत्त विद्याओं के सोलह निकायों की एक विद्या । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#61|हरिवंशपुराण - 22.61-62]] </span></p> | |||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
एक विद्या - देखें विद्या ।
का भावार्थ–भगवान् ऋषभदेव से नमि और विनमि द्वारा राज्य की याचना करने पर धरणेंद्र ने अनेक देवों के संग आकर उन दोनों को अपनी देवियों से कुछ विद्याएँ दिलाकर संतुष्ट किया। उनमें से एक विद्या का नाम अंगारिणी, हैं। ( महापुराण/7/34-334 )।
पुराणकोष से
दिति और अदिति द्वारा नमि ओर बिनमि को प्रदत्त विद्याओं के सोलह निकायों की एक विद्या । हरिवंशपुराण - 22.61-62