श्रुतस्कंध व्रत: Difference between revisions
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<strong>उत्तमविधि</strong> - भाद्रपद कृ.1 से आश्विन कृ.2 तक 32 दिन में एक उपवास एक पारणा क्रम से 16 उपवास करे। | <strong>उत्तमविधि</strong> - भाद्रपद कृ.1 से आश्विन कृ.2 तक 32 दिन में एक उपवास एक पारणा क्रम से 16 उपवास करे। | ||
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<strong>मध्यम विधि</strong> - भाद्रपद कृ.6 से शुक्ला 15 तक 20 दिन में उपरोक्त ही प्रकार 10 उपवास करे। | <strong>मध्यम विधि</strong> - भाद्रपद कृ.6 से शुक्ला 15 तक 20 दिन में उपरोक्त ही प्रकार 10 उपवास करे। | ||
<strong>लघुविधि</strong> - भाद्रपद शुक्ला 1 से आश्विन कृ.1 तक 16 दिनों में उपरोक्त ही प्रकार 8 उपवास करे। तीनों ही विधियों में 'ओं ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादनयगर्भितद्वादशांगश्रुतज्ञानाय नम:' इस | <br> | ||
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तीनों ही विधियों में 'ओं ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादनयगर्भितद्वादशांगश्रुतज्ञानाय नम:' इस मंत्र का त्रिकाल जाप करे। <span class="GRef">(व्रत विधान संग्रह/70)</span>; <span class="GRef">(किशनसिंह कृत क्रियाकोष)</span>।</span> | |||
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Latest revision as of 22:35, 17 November 2023
इस व्रत की विधि उत्तम, मध्यम व जघन्य के भेद से तीन प्रकार की है -
उत्तमविधि - भाद्रपद कृ.1 से आश्विन कृ.2 तक 32 दिन में एक उपवास एक पारणा क्रम से 16 उपवास करे।
मध्यम विधि - भाद्रपद कृ.6 से शुक्ला 15 तक 20 दिन में उपरोक्त ही प्रकार 10 उपवास करे।
लघुविधि - भाद्रपद शुक्ला 1 से आश्विन कृ.1 तक 16 दिनों में उपरोक्त ही प्रकार 8 उपवास करे।
तीनों ही विधियों में 'ओं ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादनयगर्भितद्वादशांगश्रुतज्ञानाय नम:' इस मंत्र का त्रिकाल जाप करे। (व्रत विधान संग्रह/70); (किशनसिंह कृत क्रियाकोष)।