सहस्रनयन: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(8 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
<span class="GRef"> पद्मपुराण/5/79 </span><br> | |||
<span class="HindiText"> सगर चक्रवर्ती का साला तथा सुलोचना का पुत्र। </span> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 12: | Line 14: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> विहायस्तिलक नगर के राजा सुलोचन का पुत्र । यह चक्रवर्ती सगर का साला था । इसने सगर से विद्याधरों का आधिपत्य पाकर अपने पिता सुलोचन को मारने वाले विद्याधर पूर्णधन के नगर को घेरकर युद्ध में पुर्णपन को मार डाला था । यह पूर्णपन के पुत्र मेघवाहन को भी मारना चाहता था | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> विहायस्तिलक नगर के राजा सुलोचन का पुत्र । यह चक्रवर्ती सगर का साला था । इसने सगर से विद्याधरों का आधिपत्य पाकर अपने पिता सुलोचन को मारने वाले विद्याधर पूर्णधन के नगर को घेरकर युद्ध में पुर्णपन को मार डाला था । यह पूर्णपन के पुत्र मेघवाहन को भी मारना चाहता था किंतु तीर्थंकर अजितनाथ के समवसरण में चले जाने से यह उसे पकड़ने स्वयं समवसरण में पहुँचा । वहाँ पहुँचते ही इसके परिणाम निर्मल हुए और इसने अपना वैर छोड़ दिया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#78|पद्मपुराण - 5.78-95]] </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 23: | Line 25: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 16:59, 21 February 2024
सिद्धांतकोष से
पद्मपुराण/5/79
सगर चक्रवर्ती का साला तथा सुलोचना का पुत्र।
पुराणकोष से
विहायस्तिलक नगर के राजा सुलोचन का पुत्र । यह चक्रवर्ती सगर का साला था । इसने सगर से विद्याधरों का आधिपत्य पाकर अपने पिता सुलोचन को मारने वाले विद्याधर पूर्णधन के नगर को घेरकर युद्ध में पुर्णपन को मार डाला था । यह पूर्णपन के पुत्र मेघवाहन को भी मारना चाहता था किंतु तीर्थंकर अजितनाथ के समवसरण में चले जाने से यह उसे पकड़ने स्वयं समवसरण में पहुँचा । वहाँ पहुँचते ही इसके परिणाम निर्मल हुए और इसने अपना वैर छोड़ दिया । पद्मपुराण - 5.78-95