साधु समाधि: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> भावपाहुड़ टीका/77/221/1 </span><span class="SanskritText">मुनिगणतप: संधारणं साधुसमाधि:।</span> =<span class="HindiText">मुनिगण तप को सम्यक् प्रकार से धारण करते हैं वह साधु समाधि है।</span></p> | |||
<p><span class="GRef"> धवला 8/3,41/88/1 </span><span class="PrakritText">साहूणं समाहिसंधारणदाए-दंसण-णाण-चरित्तेसु-सम्मवट्ठाणं समाही णाम। सम्मं साहणं धारणं संधारणं। समाहीए संधारणं समाहिसंधारणं, तस्स भावो समाहिसंधारणदा। ताए तित्थयरणामकम्मं वज्झदि त्ति। केण वि कारणेण पदंतिं समाहिं दट्ठूण सम्मादिट्ठी पवयणवच्छलो पवयणप्पहावओ विणयसंपण्णो सीलवदादिचारवज्जिओ अरहंतादिसु भत्तो संतो जदि धारेदि तं समाहिसंधारणं। ...सं सद्दपउं जणादो। | |||
</span>=<span class="HindiText">साधुओं की समाधिसंधारणा से तीर्थंकर नामकर्म बाँधता है - दर्शन, ज्ञान व चारित्र में सम्यक् अवस्थान का नाम समाधि है। सम्यक् प्रकार से धारण या समाधि का नाम संधारण है। समाधि का संधारण समाधिसंधारण और उसके भाव का नाम समाधि-संधारणता है। उससे तीर्थंकर नाम-कर्म बँधता है। किसी भी कारण से गिरती हुई समाधि को देखकर सम्यग्दृष्टि, प्रवचनवत्सल, प्रवचन प्रभावक, विनय संपन्न, शील-व्रतातिचार वर्जित और अर्हंतादिकों में भक्तिमान् होकर चूँकि उसे धारण करता है इसलिए वह समाधि संधारण है। ...यह संधारण शब्द में दिये गये 'सं' शब्द से जाना जाता है।</span></p> | |||
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भावपाहुड़ टीका/77/221/1 मुनिगणतप: संधारणं साधुसमाधि:। =मुनिगण तप को सम्यक् प्रकार से धारण करते हैं वह साधु समाधि है।
धवला 8/3,41/88/1 साहूणं समाहिसंधारणदाए-दंसण-णाण-चरित्तेसु-सम्मवट्ठाणं समाही णाम। सम्मं साहणं धारणं संधारणं। समाहीए संधारणं समाहिसंधारणं, तस्स भावो समाहिसंधारणदा। ताए तित्थयरणामकम्मं वज्झदि त्ति। केण वि कारणेण पदंतिं समाहिं दट्ठूण सम्मादिट्ठी पवयणवच्छलो पवयणप्पहावओ विणयसंपण्णो सीलवदादिचारवज्जिओ अरहंतादिसु भत्तो संतो जदि धारेदि तं समाहिसंधारणं। ...सं सद्दपउं जणादो। =साधुओं की समाधिसंधारणा से तीर्थंकर नामकर्म बाँधता है - दर्शन, ज्ञान व चारित्र में सम्यक् अवस्थान का नाम समाधि है। सम्यक् प्रकार से धारण या समाधि का नाम संधारण है। समाधि का संधारण समाधिसंधारण और उसके भाव का नाम समाधि-संधारणता है। उससे तीर्थंकर नाम-कर्म बँधता है। किसी भी कारण से गिरती हुई समाधि को देखकर सम्यग्दृष्टि, प्रवचनवत्सल, प्रवचन प्रभावक, विनय संपन्न, शील-व्रतातिचार वर्जित और अर्हंतादिकों में भक्तिमान् होकर चूँकि उसे धारण करता है इसलिए वह समाधि संधारण है। ...यह संधारण शब्द में दिये गये 'सं' शब्द से जाना जाता है।
और विशेष जानकारी के लिये देखें समाधि ।