स्पर्शन इंद्रिय: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(4 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
देखें [[ | <span class="GRef">तत्त्वार्थसूत्र 2/15,16,19</span><p class="SanskritText"> पंचेन्द्रियाणि ॥15॥ द्विविधानि ॥16॥ स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुः श्रोत्राणि ॥19॥</p> | ||
<p class="HindiText">= इंद्रियाँ पाँच हैं ॥15॥ वे प्रत्येक दो-दो प्रकार की हैं ॥16॥ '''स्पर्शन''', रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये इंद्रियाँ हैं ॥19॥</p> | |||
<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि 2/19/177/2</span> <p class="SanskritText"> लोके इंद्रियाणां पारतंत्र्यविवक्षा दृश्यते। अनेनाक्ष्णा सुष्ठु पश्यामि, अनेन कर्णेन सुष्ठु शृणोमीति। ततः पारतंत्र्यात्स्पर्शनादीनां करणत्वम्। वीर्यांतरायमतिज्ञानावरणक्षयोपशमांगोपांगनामलाभावष्टंभादात्मना स्पृश्यतेऽनेनेति स्पर्शनम्। रस्यतेऽनेनेति रसनम्। घ्रायतेऽनेनेति घ्राणम्। चक्षोरनेकार्थत्वाद्दर्शनार्थविवक्षायां चष्टे अर्थान्पश्यत्यनेनेति चक्षुः। श्रूयतेढ़नेनेति श्रोत्रम्। स्वातंत्र्यविवक्षा च दृश्यते। इदं मे अक्षि सुष्ठु पश्यति। अयं मे कर्णः सुष्ठु शृणोति। ततः स्पर्शनादीनां कर्तरि निष्पत्तिः। स्पृशतीति स्पर्शनम्। रसतीति रसनम्। जिघ्रतीति घ्राणम। चष्टे इति चक्षुः। शृणोति इति श्रोत्रम्।</p> | |||
<p class="HindiText">= लोक में इंद्रियों की पारतंत्र्य विवक्षा देखी जाती है जैसे इस आँख से मैं अच्छा देखता हूँ, इस कान से मैं अच्छा सुनता हूँ अतः पारतंत्र्य विवक्षा में स्पर्शन आदि इंद्रियों का करणपना बन जाता है। वीर्यांतराय और मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से तथा अंगोपांग नामकर्म के आलंबन से आत्मा जिसके द्वारा स्पर्श करता है वह '''स्पर्शन''' इंद्रिय है, जिसके द्वारा स्वाद लेता है वह रसना इंद्रिय है, जिसके द्वारा सूंघता है वह घ्राण इंद्रिय है। चक्षि धातु के अनेक अर्थ हैं। उनमें से यहाँ दर्शन रूप अर्थ लिया गया है, इसलिए जिसके द्वारा पदार्थों को देखता है वह चक्षु इंद्रिय है तथा जिसके द्वारा सुनता है वह श्रोत्र इंद्रिय है। इसी प्रकार इन इंद्रियों की स्वातंत्र्य विवक्षा भी देखी जाती है। जैसे यह मेरी आँख अच्छी तरह देखती है, यह मेरा कान अच्छी तरह सुनता है। और इसलिए इन स्पर्शन आदि इंद्रियों की कर्ता कारक में सिद्धि होती है। यथा - जो स्पर्श करती है वह स्पर्शन इंद्रिय है, जो स्वाद लेती है वह रसन इंद्रिय है, जो सूंघती है वह घ्राण इंद्रिय है, जो देखती है वह चक्षु इंद्रिय है, जो सुनती है वह कर्ण इंद्रिय है।</p><br> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ इंद्रिय ]]।</p> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 8: | Line 13: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 16:11, 28 February 2024
तत्त्वार्थसूत्र 2/15,16,19
पंचेन्द्रियाणि ॥15॥ द्विविधानि ॥16॥ स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुः श्रोत्राणि ॥19॥
= इंद्रियाँ पाँच हैं ॥15॥ वे प्रत्येक दो-दो प्रकार की हैं ॥16॥ स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये इंद्रियाँ हैं ॥19॥
सर्वार्थसिद्धि 2/19/177/2
लोके इंद्रियाणां पारतंत्र्यविवक्षा दृश्यते। अनेनाक्ष्णा सुष्ठु पश्यामि, अनेन कर्णेन सुष्ठु शृणोमीति। ततः पारतंत्र्यात्स्पर्शनादीनां करणत्वम्। वीर्यांतरायमतिज्ञानावरणक्षयोपशमांगोपांगनामलाभावष्टंभादात्मना स्पृश्यतेऽनेनेति स्पर्शनम्। रस्यतेऽनेनेति रसनम्। घ्रायतेऽनेनेति घ्राणम्। चक्षोरनेकार्थत्वाद्दर्शनार्थविवक्षायां चष्टे अर्थान्पश्यत्यनेनेति चक्षुः। श्रूयतेढ़नेनेति श्रोत्रम्। स्वातंत्र्यविवक्षा च दृश्यते। इदं मे अक्षि सुष्ठु पश्यति। अयं मे कर्णः सुष्ठु शृणोति। ततः स्पर्शनादीनां कर्तरि निष्पत्तिः। स्पृशतीति स्पर्शनम्। रसतीति रसनम्। जिघ्रतीति घ्राणम। चष्टे इति चक्षुः। शृणोति इति श्रोत्रम्।
= लोक में इंद्रियों की पारतंत्र्य विवक्षा देखी जाती है जैसे इस आँख से मैं अच्छा देखता हूँ, इस कान से मैं अच्छा सुनता हूँ अतः पारतंत्र्य विवक्षा में स्पर्शन आदि इंद्रियों का करणपना बन जाता है। वीर्यांतराय और मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से तथा अंगोपांग नामकर्म के आलंबन से आत्मा जिसके द्वारा स्पर्श करता है वह स्पर्शन इंद्रिय है, जिसके द्वारा स्वाद लेता है वह रसना इंद्रिय है, जिसके द्वारा सूंघता है वह घ्राण इंद्रिय है। चक्षि धातु के अनेक अर्थ हैं। उनमें से यहाँ दर्शन रूप अर्थ लिया गया है, इसलिए जिसके द्वारा पदार्थों को देखता है वह चक्षु इंद्रिय है तथा जिसके द्वारा सुनता है वह श्रोत्र इंद्रिय है। इसी प्रकार इन इंद्रियों की स्वातंत्र्य विवक्षा भी देखी जाती है। जैसे यह मेरी आँख अच्छी तरह देखती है, यह मेरा कान अच्छी तरह सुनता है। और इसलिए इन स्पर्शन आदि इंद्रियों की कर्ता कारक में सिद्धि होती है। यथा - जो स्पर्श करती है वह स्पर्शन इंद्रिय है, जो स्वाद लेती है वह रसन इंद्रिय है, जो सूंघती है वह घ्राण इंद्रिय है, जो देखती है वह चक्षु इंद्रिय है, जो सुनती है वह कर्ण इंद्रिय है।
अधिक जानकारी के लिये देखें इंद्रिय ।