अजीव: Difference between revisions
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<p class="HindiText">= धर्मादिक द्रव्यों में जीव का लक्षण नहीं पाया जाता है इसलिए उनकी अजीव यह सामान्य संज्ञा है।</p> | <p class="HindiText">= धर्मादिक द्रव्यों में जीव का लक्षण नहीं पाया जाता है इसलिए उनकी अजीव यह सामान्य संज्ञा है।</p> | ||
< | <span class="GRef"> प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 127</span><p class="SanskritText"> यत्र पुनरुपयोगसहचरिताया यथोदितलक्षणायाश्चेतनाया अभावाद् बहिरंतश्चा चेतनत्वमवतीर्णं प्रतिभाति सोऽजीव। </p> | ||
<p class="HindiText">= जिसमें उपयोग के साथ रहनेवाली, यथोक्त लक्षणवाली चेतना का अभाव होने से बाहर तथा भीतर अचेतनत्व अवतरित प्रतिभासित होता है, वह अजीव है।</p> | <p class="HindiText">= जिसमें उपयोग के साथ रहनेवाली, यथोक्त लक्षणवाली चेतना का अभाव होने से बाहर तथा भीतर अचेतनत्व अवतरित प्रतिभासित होता है, वह अजीव है।</p> | ||
< | <span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 15/50</span> <p class="SanskritText">इत्युक्तलक्षणोपयोगश्चेतना च यत्र नास्ति स भवत्यजीव इति विज्ञेयम्। </p> | ||
<p class="HindiText">= इस प्रकार की उक्त लक्षणवाली चेतना जहाँ नहीं है वह अजीव होता है ऐसा जानना चाहिए।</p> | <p class="HindiText">= इस प्रकार की उक्त लक्षणवाली चेतना जहाँ नहीं है वह अजीव होता है ऐसा जानना चाहिए।</p> | ||
<p>1. अजीव के दो आध्यात्मिक भेद</p> | <p class="HindiText"><b>1. अजीव के दो आध्यात्मिक भेद</b></p> | ||
< | <span class="GRef"> परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 1/30/33</span><p class="SanskritText"> तच्च द्विविधम्। जीवसंबंधमजीवसंबंधं च। </p> | ||
<p class="HindiText">= और वह दो प्रकार का है - जीव | <p class="HindiText">= और वह दो प्रकार का है - जीव संबंध और अजीव संबंध।</p> | ||
<p>2. अजीव के उपर्युक्त भेदों के लक्षण</p> | <p class="HindiText"><b>2. अजीव के उपर्युक्त भेदों के लक्षण</b></p> | ||
< | <span class="GRef"> परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 1/30/33</span> <p class="SanskritText">देहरागादिरूपं जीवसंबंधं, पुद्गलादिपंचद्रव्यरूपमजीवसंबंधमजीवलक्षणम्। </p> | ||
<p class="HindiText">= देहादि में राग रूप तो जीव | <p class="HindiText">= देहादि में राग रूप तो जीव संबंध अजीव का लक्षण है और पुद्गलादि पंचद्रव्य रूप अजीव संबंध अजीव का लक्षण है।</p> | ||
<p>3. पाँच अजीव द्रव्यों का नाम निर्देश</p> | <p class="HindiText"><b>3. पाँच अजीव द्रव्यों का नाम निर्देश</b></p> | ||
< | <span class="GRef"> तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 5/1,39</span><p class="SanskritText"> अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः 1। कालश्च। 39; </p> | ||
<p class="HindiText">= धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य पुद्गल द्रव्य और काल द्रव्य ये पाँच अजीवकाय हैं। </p> | <p class="HindiText">= धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य पुद्गल द्रव्य और काल द्रव्य ये पाँच अजीवकाय हैं। </p> | ||
<p>( प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 127) ( द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 15/50)।</p> | <p><span class="GRef">( प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 127)</span> <span class="GRef">( द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 15/50)</span>।</p> | ||
<p>4. अन्य | <p class="HindiText"><b>4. अन्य संबंधित विषय</b></p> | ||
<p>• धर्मादि द्रव्य - देखें [[ वह वह नाम ]]। </p> | <p class="HindiText">• धर्मादि द्रव्य - देखें [[ वह वह नाम ]]। </p> | ||
<p>• जीव को कथंचित् अजीव कहना - देखें [[ जीव#1.3 | जीव - 1.3]]।</p> | <p class="HindiText">• जीव को कथंचित् अजीव कहना - देखें [[ जीव#1.3 | जीव - 1.3]]।</p> | ||
<p>• अजीव-विचय धर्मध्यान का लक्षण - देखें [[ धर्मध्यान#1 | धर्मध्यान - 1]]।</p> | <p class="HindiText">• अजीव-विचय धर्मध्यान का लक्षण - देखें [[ धर्मध्यान#1 | धर्मध्यान - 1]]।</p> | ||
<p>• षट् द्रव्यों में जीव अजीव विभाग - देखें [[ द्रव्य#3 | द्रव्य - 3]]।</p> | <p class="HindiText">• षट् द्रव्यों में जीव अजीव विभाग - देखें [[ द्रव्य#3 | द्रव्य - 3]]।</p> | ||
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<p> सात तत्त्वों में दूसरा तत्त्व <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.4-5 </span>देखें [[ तत्त्व ]]। इसके पाँच भेद हैं― पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । इनमें धर्म, अधर्म, आकाश और काल अमूर्त्तिक तथा पुदगल मूर्तिक है । यह तत्त्व निर्विकल्पियों के लिए हेय है | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सात तत्त्वों में दूसरा तत्त्व <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.4-5 </span>देखें [[ तत्त्व ]]। इसके पाँच भेद हैं― पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । इनमें धर्म, अधर्म, आकाश और काल अमूर्त्तिक तथा पुदगल मूर्तिक है । यह तत्त्व निर्विकल्पियों के लिए हेय है किंतु सरागी मनुष्यों को धर्म-ध्यान के लिए उपादेय है । <span class="GRef"> महापुराण 24.89, 132, 144-149, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.115, 17.49, </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि अध्याय /1/4/14
तद्विपर्ययलक्षणोऽजीवः।
= जीव से विपरीत लक्षणवाला अजीव है।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय /5/2/266
तेषां धर्मादीनाम् `अजीव' इति सामान्यसंज्ञा जीवलक्षणाभावमुखेन प्रवृत्ता।
= धर्मादिक द्रव्यों में जीव का लक्षण नहीं पाया जाता है इसलिए उनकी अजीव यह सामान्य संज्ञा है।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 127
यत्र पुनरुपयोगसहचरिताया यथोदितलक्षणायाश्चेतनाया अभावाद् बहिरंतश्चा चेतनत्वमवतीर्णं प्रतिभाति सोऽजीव।
= जिसमें उपयोग के साथ रहनेवाली, यथोक्त लक्षणवाली चेतना का अभाव होने से बाहर तथा भीतर अचेतनत्व अवतरित प्रतिभासित होता है, वह अजीव है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 15/50
इत्युक्तलक्षणोपयोगश्चेतना च यत्र नास्ति स भवत्यजीव इति विज्ञेयम्।
= इस प्रकार की उक्त लक्षणवाली चेतना जहाँ नहीं है वह अजीव होता है ऐसा जानना चाहिए।
1. अजीव के दो आध्यात्मिक भेद
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 1/30/33
तच्च द्विविधम्। जीवसंबंधमजीवसंबंधं च।
= और वह दो प्रकार का है - जीव संबंध और अजीव संबंध।
2. अजीव के उपर्युक्त भेदों के लक्षण
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 1/30/33
देहरागादिरूपं जीवसंबंधं, पुद्गलादिपंचद्रव्यरूपमजीवसंबंधमजीवलक्षणम्।
= देहादि में राग रूप तो जीव संबंध अजीव का लक्षण है और पुद्गलादि पंचद्रव्य रूप अजीव संबंध अजीव का लक्षण है।
3. पाँच अजीव द्रव्यों का नाम निर्देश
तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 5/1,39
अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः 1। कालश्च। 39;
= धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य पुद्गल द्रव्य और काल द्रव्य ये पाँच अजीवकाय हैं।
( प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 127) ( द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 15/50)।
4. अन्य संबंधित विषय
• धर्मादि द्रव्य - देखें वह वह नाम ।
• जीव को कथंचित् अजीव कहना - देखें जीव - 1.3।
• अजीव-विचय धर्मध्यान का लक्षण - देखें धर्मध्यान - 1।
• षट् द्रव्यों में जीव अजीव विभाग - देखें द्रव्य - 3।
पुराणकोष से
सात तत्त्वों में दूसरा तत्त्व वीरवर्द्धमान चरित्र 16.4-5 देखें तत्त्व । इसके पाँच भेद हैं― पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । इनमें धर्म, अधर्म, आकाश और काल अमूर्त्तिक तथा पुदगल मूर्तिक है । यह तत्त्व निर्विकल्पियों के लिए हेय है किंतु सरागी मनुष्यों को धर्म-ध्यान के लिए उपादेय है । महापुराण 24.89, 132, 144-149, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.115, 17.49,