अधिकरण सिद्धांत: Difference between revisions
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- < | <span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/ मूल व टीका 1/1/26-31</span> <span class="SanskritText">तंत्राधिकरणाभ्युपगमसंस्थिति: सिद्धांत:।26। सर्वतंत्रप्रतितंत्राधिकरणाभ्युपगमसंस्थित्यर्थांतरभावात् ।27। सर्वतंत्राविरुद्धस्तंत्रेऽधिकृतोऽर्थ: सर्वतंत्रसिद्धांत:।28। यथा घ्राणादीनींद्रियाणि गंधादय इंद्रियार्था: पृथिव्यादीनि भूतानि प्रमाणैरर्थस्य ग्रहणमिति। -समानतंत्रसिद्ध: परतंत्रासिद्ध: प्रतितंत्रसिद्धांत:।29। यत्सिद्धावन्यप्रकरणसिद्धि: सोऽधिकरणसिद्धांत:।30। यथा देहेंद्रियव्यतिरिक्तो ज्ञाता।-अपरीक्षिताभ्युपगमात्तद्विशेषपरीक्षणमभ्युपगमसिद्धांत:।31। </span>=<p class="HindiText"> शास्त्र के अर्थ की संस्थिति किये गये अर्थ को सिद्धांत कहते हैं। उक्त सिद्धांत चार प्रकार का है। सर्वतंत्र सिद्धांत, प्रतितंत्र सिद्धांत, '''अधिकरण सिद्धांत,''' अभ्युपगम सिद्धांत।26-27।</p> | ||
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<p class="HindiText">1. उनमें से जो अर्थ सब शास्त्रों में अविरुद्धता से माना गया है उसे सर्वतंत्र सिद्धांत कहते हैं। अर्थात् जिस बात को सर्व शास्त्रकार मानते हैं जैसे घ्राण आदि पाँच इंद्रिय, गंध आदि उनके विषय तथा, पृथ्वी आदि पाँच भूत और प्रमाण द्वारा पदार्थों का ग्रहण करना इत्यादि सब ही शास्त्रकार मानते हैं।28।</p> | |||
<p class="HindiText">2. जो बात एक शास्त्र में सिद्ध हो, और दूसरे में असिद्ध हो उसे 'प्रतितंत्रसिद्धांत' कहते हैं।29।</p> | |||
<p class="HindiText">3. जिस अर्थ के सिद्ध होने से अन्य अर्थ भी नियम से सिद्ध हों उसे '''अधिकरण सिद्धांत''' कहते हैं। जैसे-देह और इंद्रियों से भिन्न कोई जानने वाला है जिसे आत्मा कहते हैं।30।</p> | |||
<p class="HindiText">4. बिना परीक्षा किये किसी पदार्थ को मानकर उस पदार्थ की विशेष परीक्षा करने को अभ्युपगम सिद्धांत कहते हैं।31।</p> | |||
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न्यायदर्शन सूत्र/ मूल व टीका 1/1/26-31 तंत्राधिकरणाभ्युपगमसंस्थिति: सिद्धांत:।26। सर्वतंत्रप्रतितंत्राधिकरणाभ्युपगमसंस्थित्यर्थांतरभावात् ।27। सर्वतंत्राविरुद्धस्तंत्रेऽधिकृतोऽर्थ: सर्वतंत्रसिद्धांत:।28। यथा घ्राणादीनींद्रियाणि गंधादय इंद्रियार्था: पृथिव्यादीनि भूतानि प्रमाणैरर्थस्य ग्रहणमिति। -समानतंत्रसिद्ध: परतंत्रासिद्ध: प्रतितंत्रसिद्धांत:।29। यत्सिद्धावन्यप्रकरणसिद्धि: सोऽधिकरणसिद्धांत:।30। यथा देहेंद्रियव्यतिरिक्तो ज्ञाता।-अपरीक्षिताभ्युपगमात्तद्विशेषपरीक्षणमभ्युपगमसिद्धांत:।31। =
शास्त्र के अर्थ की संस्थिति किये गये अर्थ को सिद्धांत कहते हैं। उक्त सिद्धांत चार प्रकार का है। सर्वतंत्र सिद्धांत, प्रतितंत्र सिद्धांत, अधिकरण सिद्धांत, अभ्युपगम सिद्धांत।26-27।
1. उनमें से जो अर्थ सब शास्त्रों में अविरुद्धता से माना गया है उसे सर्वतंत्र सिद्धांत कहते हैं। अर्थात् जिस बात को सर्व शास्त्रकार मानते हैं जैसे घ्राण आदि पाँच इंद्रिय, गंध आदि उनके विषय तथा, पृथ्वी आदि पाँच भूत और प्रमाण द्वारा पदार्थों का ग्रहण करना इत्यादि सब ही शास्त्रकार मानते हैं।28।
2. जो बात एक शास्त्र में सिद्ध हो, और दूसरे में असिद्ध हो उसे 'प्रतितंत्रसिद्धांत' कहते हैं।29।
3. जिस अर्थ के सिद्ध होने से अन्य अर्थ भी नियम से सिद्ध हों उसे अधिकरण सिद्धांत कहते हैं। जैसे-देह और इंद्रियों से भिन्न कोई जानने वाला है जिसे आत्मा कहते हैं।30।
4. बिना परीक्षा किये किसी पदार्थ को मानकर उस पदार्थ की विशेष परीक्षा करने को अभ्युपगम सिद्धांत कहते हैं।31।
- और देखें सिद्धांत - 2 ।