छाया: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(4 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
( राजवार्तिक/5/24/16-17/489/9 )..<span class="SanskritText">.प्रकाशावरणं शरीरादि यस्या निमित्तं भवति सा छाया।16। सा छाया द्वेधा व्यवतिष्ठते। कुत:। तद्वर्णादिविकारात् | <span class="GRef">( राजवार्तिक/5/24/16-17/489/9 )</span>..<span class="SanskritText">.प्रकाशावरणं शरीरादि यस्या निमित्तं भवति सा छाया।16। सा छाया द्वेधा व्यवतिष्ठते। कुत:। तद्वर्णादिविकारात् प्रतिबिंबमात्रग्रहणाच्च। आदर्शतलादिषु प्रसन्नद्रव्येषु मुखादिच्छाया तद्वर्णादिपरिणता उपलभ्यते। इतरंत्र प्रतिबिंबमात्रमेव। </span>=<span class="HindiText">प्रकाश के आवरणभूत शरीर आदि से छाया होती है। छाया दो प्रकार की है–दर्पण आदि स्वच्छ द्रव्यों में आदर्श के रंग आदि की तरह मुखादि का दिखना तद्वर्णपरिणता छाया है, तथा अन्यत्र प्रतिबिंबमात्र होती है। <span class="GRef">( सर्वार्थसिद्धि/5/24/296/2 )</span>; <span class="GRef">( तत्त्वसार/3/69 )</span>; <span class="GRef">( द्रव्यसंग्रह टीका/16/53/10 )</span> </span> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 8: | Line 8: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: छ]] | [[Category: छ]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 22:20, 17 November 2023
( राजवार्तिक/5/24/16-17/489/9 )...प्रकाशावरणं शरीरादि यस्या निमित्तं भवति सा छाया।16। सा छाया द्वेधा व्यवतिष्ठते। कुत:। तद्वर्णादिविकारात् प्रतिबिंबमात्रग्रहणाच्च। आदर्शतलादिषु प्रसन्नद्रव्येषु मुखादिच्छाया तद्वर्णादिपरिणता उपलभ्यते। इतरंत्र प्रतिबिंबमात्रमेव। =प्रकाश के आवरणभूत शरीर आदि से छाया होती है। छाया दो प्रकार की है–दर्पण आदि स्वच्छ द्रव्यों में आदर्श के रंग आदि की तरह मुखादि का दिखना तद्वर्णपरिणता छाया है, तथा अन्यत्र प्रतिबिंबमात्र होती है। ( सर्वार्थसिद्धि/5/24/296/2 ); ( तत्त्वसार/3/69 ); ( द्रव्यसंग्रह टीका/16/53/10 )