युगपत्: Difference between revisions
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<p> | <p><span class="GRef"> स्याद्वादमंजरी/23/284/8 </span><span class="SanskritText">यदा तु तेषामेव धर्माणां कालादिभिरभेदेन वृत्तमात्मरूपमुच्यते तदैकेनापि शब्देनैकधर्मप्रत्यायनमुखेन तदात्मकतामापन्नस्यानेकाशेषधर्मरूपस्य वस्तुनः प्रतिपादनसंभवाद् यौगपद्यम्।</span> =<span class="HindiText"> जिस समय वस्तु के अनेक धर्मों का काल आदि से प्रभेद सिद्ध करना होता है, उस समय एक शब्द से यद्यपि वस्तु के एक धर्म का ज्ञान होता है, परंतु एक शब्द से ज्ञात इस एक धर्म के द्वारा ही पदार्थों के अनेक धर्मों का ज्ञान होता है। इसे वस्तुओं का एक साथ (युगपत्) ज्ञान होना कहते हैं। <span class="GRef">( सप्तभंगीतरंगिणी/33/3 )</span>। </span></p> | ||
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स्याद्वादमंजरी/23/284/8 यदा तु तेषामेव धर्माणां कालादिभिरभेदेन वृत्तमात्मरूपमुच्यते तदैकेनापि शब्देनैकधर्मप्रत्यायनमुखेन तदात्मकतामापन्नस्यानेकाशेषधर्मरूपस्य वस्तुनः प्रतिपादनसंभवाद् यौगपद्यम्। = जिस समय वस्तु के अनेक धर्मों का काल आदि से प्रभेद सिद्ध करना होता है, उस समय एक शब्द से यद्यपि वस्तु के एक धर्म का ज्ञान होता है, परंतु एक शब्द से ज्ञात इस एक धर्म के द्वारा ही पदार्थों के अनेक धर्मों का ज्ञान होता है। इसे वस्तुओं का एक साथ (युगपत्) ज्ञान होना कहते हैं। ( सप्तभंगीतरंगिणी/33/3 )।