शिक्षा व्रत: Difference between revisions
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<span class="GRef"> भगवती आराधना/2082-2083 </span><span class="SanskritText">भोगाणं परिसंखा सामाइयमतिहिसंविभागो य। पोसहविधी य सव्वो चदुरो सिक्खाउ बुत्ताओ।2082। आसुक्कारे मरणे अव्वोच्छिण्णाए जोविदासाए। णादीहि वा अमुक्को पच्छिमसल्लेहणमंकासी।2083।</span> = <span class="HindiText">भोगोपभोग परिमाण, सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथि संविभाग ये चार शिक्षाव्रत हैं।2082। इन व्रतों को पालने वाला गृहस्थ सहसा मरण आने पर जीवित की आशा रहने पर, जिसके बंधुगण ने दीक्षा लेने की सम्मति नहीं दी है ऐसे प्रसंग में सल्लेखना धारण करता है। <span class="GRef">( सर्वार्थसिद्धि/7/21,22/359,363/7,1 )</span>।</span> | |||
<p><span class=" | <p><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 91 | रत्नकरंड श्रावकाचार/91]] </span><span class="SanskritText">देशावकाशिकं वा सामायिकं प्रोषधोपवासो वा। वैयावृत्यं शिक्षाव्रतानि चत्वारि शिष्टानि।91।</span> = <span class="HindiText">देशावकाशिक तथा सामायिक, प्रोषधोपवास और वैयावृत्य ये चार शिक्षाव्रत कहे गये हैं।</span></p> | ||
<p><span class=" | <p><span class="GRef"> चारित्तपाहुड़/ मूल /26</span> <span class="PrakritText">सामाइयं च पढमं विदियं च तहेव पोसइं भणियं। तइयं च अतिहिपुज्ज चउत्थ सल्लेहणा अंते।</span> = <span class="HindiText">पहला सामायिक शिक्षाव्रत, दूसरा प्रोषधव्रत, तीसरा अतिथिपूजा और चौथा शिक्षाव्रत अंत समय सल्लेखना है।26।</span></p> | ||
<p><span class=" | <p><span class="GRef"> वसुनंदी श्रावकाचार/217-219,270 </span><br><span class="HindiText">भोगविरति, परिभोग-निवृत्ति तीसरा अतिथि संविभाग व चौथा सल्लेखना नाम का शिक्षाव्रत होता है।</span></p> | ||
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भगवती आराधना/2082-2083 भोगाणं परिसंखा सामाइयमतिहिसंविभागो य। पोसहविधी य सव्वो चदुरो सिक्खाउ बुत्ताओ।2082। आसुक्कारे मरणे अव्वोच्छिण्णाए जोविदासाए। णादीहि वा अमुक्को पच्छिमसल्लेहणमंकासी।2083। = भोगोपभोग परिमाण, सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथि संविभाग ये चार शिक्षाव्रत हैं।2082। इन व्रतों को पालने वाला गृहस्थ सहसा मरण आने पर जीवित की आशा रहने पर, जिसके बंधुगण ने दीक्षा लेने की सम्मति नहीं दी है ऐसे प्रसंग में सल्लेखना धारण करता है। ( सर्वार्थसिद्धि/7/21,22/359,363/7,1 )।
रत्नकरंड श्रावकाचार/91 देशावकाशिकं वा सामायिकं प्रोषधोपवासो वा। वैयावृत्यं शिक्षाव्रतानि चत्वारि शिष्टानि।91। = देशावकाशिक तथा सामायिक, प्रोषधोपवास और वैयावृत्य ये चार शिक्षाव्रत कहे गये हैं।
चारित्तपाहुड़/ मूल /26 सामाइयं च पढमं विदियं च तहेव पोसइं भणियं। तइयं च अतिहिपुज्ज चउत्थ सल्लेहणा अंते। = पहला सामायिक शिक्षाव्रत, दूसरा प्रोषधव्रत, तीसरा अतिथिपूजा और चौथा शिक्षाव्रत अंत समय सल्लेखना है।26।
वसुनंदी श्रावकाचार/217-219,270
भोगविरति, परिभोग-निवृत्ति तीसरा अतिथि संविभाग व चौथा सल्लेखना नाम का शिक्षाव्रत होता है।