सर्वगुप्त: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) वृषभदेव के सत्ताईसवें और इकतालीसवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.59, 62 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) वृषभदेव के सत्ताईसवें और इकतालीसवें गणधर । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_12#59|हरिवंशपुराण - 12.59]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_12#62|हरिवंशपुराण - 12.62]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक मुनि । शंखपुर नगर के राजा राजगुप्त और रानी शंखिका दोनों ने इनसे जिनगुणस्वाति नामक व्रत ग्रहण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 63.246-247 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक मुनि । शंखपुर नगर के राजा राजगुप्त और रानी शंखिका दोनों ने इनसे जिनगुणस्वाति नामक व्रत ग्रहण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 63.246-247 </span></p> | ||
<p id="3">(3) एक केवली मुनि । इनसे प्रीतिंकर ने धर्मोपदेश सुना था । <span class="GRef"> महापुराण 59.7 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) एक केवली मुनि । इनसे प्रीतिंकर ने धर्मोपदेश सुना था । <span class="GRef"> महापुराण 59.7 </span></p> | ||
<p id="4">(4) | <p id="4" class="HindiText">(4) काकंदी नगरी के राजा रतिवर्द्धन का मंत्री । इसकी स्त्री विजयावली थी । इसने रात्रि के समय राजमहल में आग लगवा दी थी । राजा सावधान रहता था, अत: आग लगते ही स्त्री और पुत्रों को लेकर महल से बाहर निकल गया था । राजा के न रहने पर यही राजा बना था । अंत में यह काशी के राजा कशिपु द्वारा पकड़ा गया तथा नगर के बाहर बसाया गया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_108#7|पद्मपुराण - 108.7-33]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 16:10, 20 February 2024
सिद्धांतकोष से
भगवती आराधना के रचयिता आचार्य शिवकोटि के गुरु थे। तदनुसार इनका समय -ई.श.1 का पूर्वापाद। ( भगवती आराधना/प्रस्तावना 2-3/प्रेमीजी )। -देखें शिवकोटि ।
पुराणकोष से
(1) वृषभदेव के सत्ताईसवें और इकतालीसवें गणधर । हरिवंशपुराण - 12.59,हरिवंशपुराण - 12.62
(2) एक मुनि । शंखपुर नगर के राजा राजगुप्त और रानी शंखिका दोनों ने इनसे जिनगुणस्वाति नामक व्रत ग्रहण किया था । महापुराण 63.246-247
(3) एक केवली मुनि । इनसे प्रीतिंकर ने धर्मोपदेश सुना था । महापुराण 59.7
(4) काकंदी नगरी के राजा रतिवर्द्धन का मंत्री । इसकी स्त्री विजयावली थी । इसने रात्रि के समय राजमहल में आग लगवा दी थी । राजा सावधान रहता था, अत: आग लगते ही स्त्री और पुत्रों को लेकर महल से बाहर निकल गया था । राजा के न रहने पर यही राजा बना था । अंत में यह काशी के राजा कशिपु द्वारा पकड़ा गया तथा नगर के बाहर बसाया गया । पद्मपुराण - 108.7-33