स्मृत्यनुपस्थानानि: Difference between revisions
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<span class="GRef"> राजवार्तिक/7/33/4-5/557/13 </span><p class="SanskritText">अनैकाग्य्रमसमाहितमनस्कृता स्मृत्यनुपस्थानमित्याख्यायते।4। स्यादेतत्-स्मृत्यनुपस्थानं तन्मनोदु:प्रणिधानमेवेति तस्य ग्रहणमनर्थकमिति: तन्न: किं कारणम् । तत्रांयाचिंतनात् । तत्र हि अन्यत् किंचित् अचिंतयतश्चिंतयत एवाविषये क्रोधाद्यावेश: औदासीन्येन वावस्थानं मनस:, इह पुन: परिस्पंदनात् चिंताया ऐकाग्य्रेणावस्थानमिति विस्पष्टमन्यत्वम् । रात्रिंदिवीयस्य वा प्रमादाधिकस्य सचित्यानुपस्थानम् ।</p> | |||
<p class="HindiText">चित्त की एकाग्रता न होना और मन में समाधिरूपता का न होना स्मृत्यनुपस्थान है।</p> | <p class="HindiText">चित्त की एकाग्रता न होना और मन में समाधिरूपता का न होना स्मृत्यनुपस्थान है।</p> | ||
<p class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>- स्मृत्यनुपस्थान तो मनदुष्प्रणिधान ही है, इसलिए इसका कथन करना व्यर्थ है ?</p> | <p class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>- स्मृत्यनुपस्थान तो मनदुष्प्रणिधान ही है, इसलिए इसका कथन करना व्यर्थ है ?</p> | ||
<p class="HindiText"><strong>उत्तर</strong>- ऐसा नहीं है, क्योंकि, मनोदुष्प्रणिधान में अन्य विचार नहीं आता, जिस विषय का विचार किया जाता है, उसमें भी क्रोधादि का आवेश आ जाता है, | <p class="HindiText"><strong>उत्तर</strong>- ऐसा नहीं है, क्योंकि, मनोदुष्प्रणिधान में अन्य विचार नहीं आता, जिस विषय का विचार किया जाता है, उसमें भी क्रोधादि का आवेश आ जाता है, किंतु स्मृत्यनुपस्थान में चिंता के विकल्प चलते रहते हैं और चित्त में एकाग्रता नहीं आती। अथवा रात्रि और दिन की नित्य क्रियाओं को ही प्रमाद की अधिकता से भूल जाना स्मृत्यनुपस्थान है। <span class="GRef">( चारित्रसार/20/5 )</span></p> | ||
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Latest revision as of 16:28, 28 February 2024
- सामायिक व्रत का एक अतिचार-देखें सामायिक-3.8;
- प्रोषधोपवास व्रत का एक अतिचार-देखें प्रोषधोपवास-2.1।
- सर्वार्थसिद्धि/7/33/370/6 अनैकाग्य्रं स्मृत्यनुपस्थानं।
राजवार्तिक/7/33/4-5/557/13
अनैकाग्य्रमसमाहितमनस्कृता स्मृत्यनुपस्थानमित्याख्यायते।4। स्यादेतत्-स्मृत्यनुपस्थानं तन्मनोदु:प्रणिधानमेवेति तस्य ग्रहणमनर्थकमिति: तन्न: किं कारणम् । तत्रांयाचिंतनात् । तत्र हि अन्यत् किंचित् अचिंतयतश्चिंतयत एवाविषये क्रोधाद्यावेश: औदासीन्येन वावस्थानं मनस:, इह पुन: परिस्पंदनात् चिंताया ऐकाग्य्रेणावस्थानमिति विस्पष्टमन्यत्वम् । रात्रिंदिवीयस्य वा प्रमादाधिकस्य सचित्यानुपस्थानम् ।
चित्त की एकाग्रता न होना और मन में समाधिरूपता का न होना स्मृत्यनुपस्थान है।
प्रश्न- स्मृत्यनुपस्थान तो मनदुष्प्रणिधान ही है, इसलिए इसका कथन करना व्यर्थ है ?
उत्तर- ऐसा नहीं है, क्योंकि, मनोदुष्प्रणिधान में अन्य विचार नहीं आता, जिस विषय का विचार किया जाता है, उसमें भी क्रोधादि का आवेश आ जाता है, किंतु स्मृत्यनुपस्थान में चिंता के विकल्प चलते रहते हैं और चित्त में एकाग्रता नहीं आती। अथवा रात्रि और दिन की नित्य क्रियाओं को ही प्रमाद की अधिकता से भूल जाना स्मृत्यनुपस्थान है। ( चारित्रसार/20/5 )