अत्यंतायोगव्यवच्छेद: Difference between revisions
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<span class="HindiText">= निपात अर्थात् एवकार व्यतिरेचक अर्थात् निवर्तक या नियामक होता है। विशेषण, विशेष्य और क्रिया के साथ कहा गया निपात क्रम से अयोग, अपरयोग (अन्य योग) और अत्यन्तायोग का व्यवच्छेद करता है। जैसे-`पार्थो धनुर्धरः’, और `नीलं सरोजम्’, इन वाक्यों के साथ प्रयुक्त एवकार। (अर्थात् एवकार तीन प्रकार के होते हैं-अयोग-व्यवच्छेदक, अन्ययोग-व्यवच्छेदक और '''अत्यन्तायोग-व्यवच्छेदक''')। <span class="GRef">( सप्तभंग तरंंगिनी पृष्ठ 25-26 )</span></span> | |||
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Latest revision as of 22:14, 17 November 2023
धवला 11/4,2,6,177/श्लोक 7-8/317/10 विशेषणविशेष्याभ्यां क्रियया च सहोदितः। पार्थो धनुर्धरो नीलं सरोजमिति वा यथा ॥8॥ अयोगमपरैर्योगमत्यंतायोगमेव च। व्यवच्छिनत्ति धर्मस्य निपातो व्यतिरेचकः।
= निपात अर्थात् एवकार व्यतिरेचक अर्थात् निवर्तक या नियामक होता है। विशेषण, विशेष्य और क्रिया के साथ कहा गया निपात क्रम से अयोग, अपरयोग (अन्य योग) और अत्यन्तायोग का व्यवच्छेद करता है। जैसे-`पार्थो धनुर्धरः’, और `नीलं सरोजम्’, इन वाक्यों के साथ प्रयुक्त एवकार। (अर्थात् एवकार तीन प्रकार के होते हैं-अयोग-व्यवच्छेदक, अन्ययोग-व्यवच्छेदक और अत्यन्तायोग-व्यवच्छेदक)। ( सप्तभंग तरंंगिनी पृष्ठ 25-26 )
-विस्तार से जानने के लिये देखें एवकार ।