अनधिगत चारित्र: Difference between revisions
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<span class="GRef"> राजवार्तिक/3/36/2/201/8 </span><span class="SanskritText">चारित्रार्या द्वेधा अधिगतचारित्रार्या: अनधिगतचारित्रार्याश्चेति। तद्भेद: अनुपदेशोपदेशापेक्षभेदकृत:। चारित्रमोहस्योपशमात् क्षयाच्च बाह्योपदेशानपेक्षा आत्मप्रसादादेव चारित्रपरिणामास्कंदिन: उपशांतकषाया: क्षीणकषायाश्चाधिगतचारित्रार्या: अंतश्चारित्रमोहक्षयोपशमसद्भावे सति बाह्योपदेशनिमित्तविरतिपरिणामा अनधिगमचारित्रार्या:। </span>=<span class="HindiText">असावद्यकर्मार्य दो प्रकार के हैं–अधिगत चारित्रार्य और '''अनधिगत चारित्रार्य'''। जो बाह्य उपदेश के बिना स्वयं ही चारित्रमोह के उपशम वा क्षय से प्राप्त आत्म प्रसाद से चारित्र परिणाम को प्राप्त हुए हैं, ऐसे उपशांत कषाय और क्षीण कषाय गुणस्थावर्ती जीव अधिगत चारित्रार्य हैं। और जो अंदर में चारित्रमोह का क्षयोपशम होने पर बाह्योपदेश के निमित्त से विरति परिणाम को प्राप्त हुए हैं वे अनधिगत चारित्रार्य हैं। तात्पर्य यह है कि उपशम व क्षायिकचारित्र तो अधिगत कहलाते हैं और क्षयोपशम चारित्र अनधिगत। <br /> | |||
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राजवार्तिक/3/36/2/201/8 चारित्रार्या द्वेधा अधिगतचारित्रार्या: अनधिगतचारित्रार्याश्चेति। तद्भेद: अनुपदेशोपदेशापेक्षभेदकृत:। चारित्रमोहस्योपशमात् क्षयाच्च बाह्योपदेशानपेक्षा आत्मप्रसादादेव चारित्रपरिणामास्कंदिन: उपशांतकषाया: क्षीणकषायाश्चाधिगतचारित्रार्या: अंतश्चारित्रमोहक्षयोपशमसद्भावे सति बाह्योपदेशनिमित्तविरतिपरिणामा अनधिगमचारित्रार्या:। =असावद्यकर्मार्य दो प्रकार के हैं–अधिगत चारित्रार्य और अनधिगत चारित्रार्य। जो बाह्य उपदेश के बिना स्वयं ही चारित्रमोह के उपशम वा क्षय से प्राप्त आत्म प्रसाद से चारित्र परिणाम को प्राप्त हुए हैं, ऐसे उपशांत कषाय और क्षीण कषाय गुणस्थावर्ती जीव अधिगत चारित्रार्य हैं। और जो अंदर में चारित्रमोह का क्षयोपशम होने पर बाह्योपदेश के निमित्त से विरति परिणाम को प्राप्त हुए हैं वे अनधिगत चारित्रार्य हैं। तात्पर्य यह है कि उपशम व क्षायिकचारित्र तो अधिगत कहलाते हैं और क्षयोपशम चारित्र अनधिगत।
- देखें चारित्र - 1.17 |।