अनुत्पादनोच्छेद: Difference between revisions
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धवला/8/3, 4/ पृष्ठ/पंक्ति एदम्मि गुणट्ठाणे एदासिं पयडीणं बंध वोच्छेदो होदि त्ति कहिदे हेट्ठिल्ल गुणट्ठाणाणि तासिं पयडीणं बंधसामियाणि त्ति सिद्धीदो। किंच वोच्छेदो दुविहो उप्पादाणुच्छेदो अणुप्पादाणुच्छेदो। उत्पादः सत्त्वं, अनुच्छेदो विनाशः अभावः नीरूपिता इति यावत्। उत्पाद एव अनुच्छेदः उत्पादानुच्छेदः, भाव एव अभाव इति यावत्। एसो दव्वट्ठियणयव्ववहारो। ण च एसो एयंतेण चप्पलओ, उत्तरकाले अप्पिदपज्जयास्स विणासेण विसिट्ठदव्वस्स पुव्विल्लकाले वि उवलंभादो। (5/7)। अनुत्पादः असत्त्वं, अनुच्छेदो विनाशः, अनुत्पाद एव अनुच्छेदः (अनुत्पादानुच्छेदः) असतः अभाव इति यावत्, सतः असत्त्वविरोधात्। एसो पज्जवट्ठियणयववहारो। एत्थं पुण उप्पादाणुच्छेदमस्सिदूण जेण सुत्तकारेण अभावव्ववहारो कदो तेण भावो चेव पयडिबंधस्स परूविदो। तेणेदस्स गंथस्स बंधसामित्तविचयसण्णा घडदि त्ति। (6/8)। =
- इस गुणस्थान में इतनी प्रकृतियों का बंधव्युच्छेद होता है, ऐसा कहने पर उससे नीचे के गुणस्थान उन प्रकृतियों के बंध के स्वामी हैं, यह स्वयमेव सिद्ध हो जाता है।
- दूसरी बात यह है कि व्युच्छेद दो प्रकार का है–उत्पादानुच्छेद और अनुत्पादानुच्छेद। उत्पाद का अर्थ सत्त्व और अनुच्छेद का अर्थ विनाश, अभाव अथवा नीरूपीपना है । उत्पाद ही अनुच्छेद सो उत्पादानुच्छेद (इस प्रकार यहाँ कर्मधारय समास है)। उक्त कथन का अभिप्राय भाव या सत्त्व को ही अभाव बतलाना है। यह द्रव्यार्थिक नय के आश्रित व्यवहार है और यह सर्वथा मिथ्या भी नहीं है, क्योंकि उत्तरकाल में विवक्षित पर्याय के विनाश से विशिष्ट द्रव्य पूर्वकाल में भी पाया जाता है। अनुत्पाद का अर्थ असत्त्व और अनुच्छेद का अर्थ विनाश है। अनुत्पाद ही अनुच्छेद अर्थात् असत् का अभाव होना अनुत्पादानुच्छेद हैः क्योंकि सत् के असत्त्व का विरोध है। यह पर्यायार्थिक नय के आश्रित व्यवहार है।
- यहाँ पर चूँकि सूत्रकार ने उत्पादानुच्छेद का (अर्थात् पहले भेद का) आश्रय करके ही अभाव का व्यवहार किया है, इसलिए प्रकृतिबंध का सद्भाव ही निरूपित किया गया है। इस प्रकार इस ग्रंथ का बंधस्वामित्वविचय नाम संगत है।
गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/94/80/4 बंधव्युच्छित्तौ द्वौ नयौ इच्छंति-उत्पादानुच्छेदोऽनुत्पादानुच्छेदश्चेति। तत्र उत्पादानुच्छेदो नाम द्रव्यार्थिकः तेन सत्त्वावस्थायामेव विनाशमिच्छति। असत्त्वे बुद्धिविषयातिक्रांतभावेन वचनगोचरातिक्रांते सति अभावव्यवहारानुपपत्तेः।...... तस्मात् भाव एव अभाव इति सिद्धं। अनुत्पादानुच्छेदो नाम पर्यायार्थिकः तेन असत्त्वावस्थायामभावव्यपदेशमिच्छति। भावे उपलभ्यमाने अभावत्वविरोधात्।..... अत्र पुनः सूत्रे द्रव्यार्थिकनयः उत्पादानुच्छेदोऽवलंबितः उत्पादस्य विद्यमानस्य अनुच्छेदः अविनाशः यस्मिन् असौ उत्पादानुच्छेदो नयः। इति द्रव्यार्थिकनयापेक्षया स्वस्वगुणस्थानचरमसमये बंधव्युच्छित्तिः बंधविनाशः। पर्यायार्थिकनयेन तु अनंतरसमये बंधनाशः। = व्युच्छित्ति का कथन दो नय से किया जाता है। उत्पादानुच्छेद और अनुत्पादानुच्छेद। तहाँ उत्पादानुच्छेद नाम द्रव्यार्थिकनय का है। इस नय से सत्त्व की अवस्था में ही विनाश माना जाता है, क्योंकि बुद्धि का विषय न बनने पर तब वह अभाव वचन के अगोचर हो जाता है और इस प्रकार उस अभाव का व्यवहार ही नहीं हो सकता। इसलिए सद्भाव में ही असद्भाव कहना योग्य है, यह सिद्ध हो जाता है। अनुत्पादानुच्छेद नाम पर्यायार्थिक नय का है। इस नय से असत्त्व की अवस्था में अभाव का व्यपदेश किया जाता है। क्योंकि सद्भाव के उपलब्ध होने पर अभावपने के होने का विरोध है। यहाँ सूत्र में द्रव्यार्थिक नय अर्थात् उत्पादानुच्छेद का अवलंबन लेकर वर्णन किया गया है। उत्पाद का अर्थात् विद्यमान का अनुच्छेद या विनाश जिसमें होता है अर्थात् सद्भाव का विनाश जहाँ होता है, वह उत्पादानुच्छेद नय है। इस प्रकार द्रव्यार्थिक नय की अपेक्ष से अपने-अपने गुणस्थान के चरम समय में बंधव्युच्छित्ति अर्थात् बंध का विनाश होता है। पर्यायार्थिक नय से उस चरम समय के अनंतर वाले अगले समय में बंध का नाश होता है, ऐसा समझना चाहिए।