जीवाराम: Difference between revisions
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शोलापुर के एक धनाढ्य दोशीकुल के रत्न थे। आपका जन्म ई.1880 में हुआ था। केवल अँगरेज़ी की तीसरी और मराठी की 5वीं तक पढ़े। बड़े समाजसेवी व धर्मवत्सल थे। ई.1908 में एल्लक पन्नालालजी से श्रावक के व्रत लिये। ई.1954 में कुंथलगिरि पर नवमी प्रतिमा धारण की। और ई.1961 में स्वर्ग सिधार गये। (ई.1940 में स्वयं 30,000) रु. देकर जीवराज जैन | शोलापुर के एक धनाढ्य दोशीकुल के रत्न थे। आपका जन्म ई.1880 में हुआ था। केवल अँगरेज़ी की तीसरी और मराठी की 5वीं तक पढ़े। बड़े समाजसेवी व धर्मवत्सल थे। ई.1908 में एल्लक पन्नालालजी से श्रावक के व्रत लिये। ई.1954 में कुंथलगिरि पर नवमी प्रतिमा धारण की। और ई.1961 में स्वर्ग सिधार गये। (ई.1940 में स्वयं 30,000) रु. देकर जीवराज जैन ग्रंथमाला की स्थापना की, जो जैन वाङ्म्य की बहुत सेवा कर रही है। | ||
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शोलापुर के एक धनाढ्य दोशीकुल के रत्न थे। आपका जन्म ई.1880 में हुआ था। केवल अँगरेज़ी की तीसरी और मराठी की 5वीं तक पढ़े। बड़े समाजसेवी व धर्मवत्सल थे। ई.1908 में एल्लक पन्नालालजी से श्रावक के व्रत लिये। ई.1954 में कुंथलगिरि पर नवमी प्रतिमा धारण की। और ई.1961 में स्वर्ग सिधार गये। (ई.1940 में स्वयं 30,000) रु. देकर जीवराज जैन ग्रंथमाला की स्थापना की, जो जैन वाङ्म्य की बहुत सेवा कर रही है।