|
|
(2 intermediate revisions by the same user not shown) |
Line 1: |
Line 1: |
| <p> राजा पाण्डु के युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पाँच पुत्र । इनमें प्रथम तीन पाण्डु की रानी कुन्ती के तथा अन्तिम दो उसकी दूसरी रानी माद्री से उत्पन्न हुए थे । राज्य के विषय को लेकर इनका कौरवों से विरोध हो गया था । द्वेषवश कौरवों ने इन्हें लाक्षागृह में जलाकर मारने का षड्यन्त्र किया था किन्तु ये माता कुन्ती सहित सुरंग से निकलकर बच गये थे । स्वयंवर में अर्जुन ने गाण्डीव धनुष को चढ़ाकर माकम्दी के राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी प्राप्त की थी । अर्जुन के गले में डालते समय माला के टूट जाने से उसके फूल वायु वेग से उसी परित में बैठे अर्जुन के अन्य भाइयों पर भी जा पड़े इसलिए चपल लोग यह कहने लगे थे कि द्रौपदी ने पाँचों भाइयों को वरा है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.2, 37-39, 56-57, 121-130, 138, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 12.166-168, 15.112-115 </span>जुएं में कौरवों से हार जाने के कारण इन्हें बारह वर्ष का वन और एक वर्ष का अज्ञातवास करना पड़ा था । द्रौपदी का अपमान भी इन्हें सहना पड़ा । विराट नगर में इन्हें गुप्त वेष में रहना पडा, इसी नगर में भीम ने कीचक को मारा था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 46.2-36, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 16.121-141, 17.230-244, 295-296 </span>अन्त में कृष्ण-जरासन्ध का युद्ध हुआ । इसमें पाण्डव कृष्ण के पक्ष में और कौरव जरासन्ध की ओर से लड़े थे । इस युद्ध में द्रोणाचार्य को धृष्टार्जुन ने, भीष्म और कर्ण को अर्जुन ने तथा दुर्योधन और उसके निन्यानवें भाइयों को भीम ने मारा था । कृष्ण ने जरासन्ध को मारा था । कृष्णा की इस विजय के साथ पाण्डवों को भी कौरवों पर पूर्ण विजय हो गयी । उन्हें उनका खोया राज्य वापस मिला । <span class="GRef"> पांडवपुराण 19. 221-224,20.166-232, 296 </span>राज्य प्राप्त करने के पश्चात् नारद की प्रेरणा से विद्याधर पद्मनाभ द्वारा भेजा गया देव द्रौपदी को हरकर ले गया था । नारद ने ही द्रौपदी के हरे जाने का समाचार कृष्ण को दिया था । पश्चात् श्री स्वस्तिक देव को सिद्ध कर कृष्ण अमरकंकापुरी गये और वहाँ के राजा को पराजित कर द्रौपदी को ससम्मान के आये थे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 21. 57-58, 113-141 </span>इन्होंने पूर्व जन्म में निर्मल काम किये थे । युधिष्ठिर ने निर्मल चरित्र पाला था, सत्य-भाषण से उसे यश मिला था । भीम वैयावृत्ति तप के प्रभाव से अजेय और बलिष्ठ हुआ, पवित्र चारित्र के प्रभाव से अर्जुन धनुर्धारी वीर हुआ, पूर्व तप के फलस्वरूप नकुल और सहदेव उनके भाई हुए । <span class="GRef"> पांडवपुराण 24.85-90 </span>अन्त में नेमि जिनसे इन्होंने दीक्षा ली । तप करते समय ये शत्रुंजय गिरि पर दुर्योधन के भानजे कुर्यधर द्वारा किये गये उपसर्ग-काल में ध्यानरत रहे । ज्ञान-दर्शनापयोग में रमते हुए अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन करते हुए ये आत्मलीन रहे । इस कठिन तपश्चरण के फलस्वरूप युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन ने केवलज्ञान प्राप्त किया तथा वे मुक्ति को प्राप्त हुए । अल्प कषाय शेष रह जाने से नकुल और सहदेव सर्वार्थसिद्धि स्वर्ग में अहमिन्द्र हुए । वहाँ से च्युत होकर वे आगे मुक्त होगे । कुन्ती, द्रौपदी, राजीमती और सुभद्रा आर्यिका के व्रत पालकर सोलहवें स्वर्ग में उत्पन्न हुई थी । <span class="GRef"> पांडवपुराण 25.12-14,52-143 </span></p>
| |
|
| |
|
| |
|
| <noinclude>
| | #REDIRECT [[पांडव]] |
| [[ पाणिमुक्तागति | पूर्व पृष्ठ ]] | |
| | |
| [[ पाण्डवपुराण | अगला पृष्ठ ]]
| |
| | |
| </noinclude>
| |
| [[Category: पुराण-कोष]]
| |
| [[Category: प]]
| |