अनवस्थाप्य: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p>परिहार प्रायश्चित्त का एक भेद - देखें [[ | <span class="GRef"> धवला 13/5,4,26/62/4 </span><span class="PrakritText">तत्थ अणवट्ठओ जहण्णेण छम्मासकालो उक्कस्सेण बारसवासपेरं तो। कायभूमीदो परदो चेव कयविहारो पडिवंदणविरहिदो गुरुवदिरित्तासेसजणेसु कयमोणाभिग्गहो खवणांयविलपुरिमड्ढेयट्ठाणणिव्वियदीहि सोसिय-रस-रुहिर-मांसो होदि।</span> =<span class="HindiText"> <b>अनवस्थाप्य</b> परिहार प्रायश्चित्त का जघन्य काल छह महीना और उत्कृष्ट काल बारह वर्ष है। वह काय भूमि से दूर रहकर ही विहार करता है, प्रतिवंदना से रहित होता है, गुरु के सिवाय अन्य सब साधुओं के साथ मौन रखता है तथा उपवास, आचाम्ल, दिन के पूर्वार्ध में एकासन और निर्विकृति आदि तपों द्वारा शरीर के रस, रुधिर और मांस को शोषित करनेवाला होता है। </span><br /> | ||
<p class="HindiText">परिहार प्रायश्चित्त का एक भेद - देखें [[ परिहार_प्रायश्चित्त ]]।</p> | |||
Line 9: | Line 13: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 10:21, 16 December 2022
धवला 13/5,4,26/62/4 तत्थ अणवट्ठओ जहण्णेण छम्मासकालो उक्कस्सेण बारसवासपेरं तो। कायभूमीदो परदो चेव कयविहारो पडिवंदणविरहिदो गुरुवदिरित्तासेसजणेसु कयमोणाभिग्गहो खवणांयविलपुरिमड्ढेयट्ठाणणिव्वियदीहि सोसिय-रस-रुहिर-मांसो होदि। = अनवस्थाप्य परिहार प्रायश्चित्त का जघन्य काल छह महीना और उत्कृष्ट काल बारह वर्ष है। वह काय भूमि से दूर रहकर ही विहार करता है, प्रतिवंदना से रहित होता है, गुरु के सिवाय अन्य सब साधुओं के साथ मौन रखता है तथा उपवास, आचाम्ल, दिन के पूर्वार्ध में एकासन और निर्विकृति आदि तपों द्वारा शरीर के रस, रुधिर और मांस को शोषित करनेवाला होता है।
परिहार प्रायश्चित्त का एक भेद - देखें परिहार_प्रायश्चित्त ।