अनिसृष्ट: Difference between revisions
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<p class="HindiText">वसतिका के 46 दोषों मे से एक दोष- '''अनिसृष्ट''' दोष है। '''अनिसृष्ट दोष''' के दो भेद हैं - जो दानकार्य में नियुक्त नहीं हुआ है ऐसे स्वामी से जो वसतिका दी जाती है वह अनिसृष्ट दोष से दूषित है । और जो वसतिका बालक और परवश ऐसे स्वामी से दी जाती है वह '''अनिसृष्ट दोष''' से दूषित समझनी चाहिए <span class="GRef">।भगवती आराधना / विजयोदया टीका/230/443/10</span> </p> | |||
<p class="HindiText">वसतिका का दोष - देखें [[ वसतिका ]]। </p><br> | |||
<p class="HindiText"><b>2. आहार का दोष</b></p> | |||
<p class="HindiText">आहार के 46 दोषों मे से एक दोष- '''अनिसृष्ट''' दोष है। - अनिसृष्ट के दो भेद हैं - ईश्वर और अनीश्वर दोनों के भी मिलाकर चार भेद हैं। पहला भेद ईश्वर सारक्ष तथा ईश्वर के तीन भेद - व्यक्त, अव्यक्त व संघाट। दान का स्वामी देने की इच्छा करे और मंत्री आदि मना करें तो दिया हुआ भी अनीशार्थ है। स्वामी से अन्य जनों का निषेध किया अनीश्वर कहलाता है। वह व्यक्त अर्थात् वृद्ध, अव्यक्त अर्थात् बाल और संघाट अर्थात् दोनों के भेद से तीन प्रकार का है <span class="GRef">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 447-461</span> </p><br> | |||
<p class="HindiText"> और देखें [[ आहार#II.2.2 | आहार - II.2.2]]।</p> | |||
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Latest revision as of 10:19, 17 December 2022
1. वसतिका का दोष
वसतिका के 46 दोषों मे से एक दोष- अनिसृष्ट दोष है। अनिसृष्ट दोष के दो भेद हैं - जो दानकार्य में नियुक्त नहीं हुआ है ऐसे स्वामी से जो वसतिका दी जाती है वह अनिसृष्ट दोष से दूषित है । और जो वसतिका बालक और परवश ऐसे स्वामी से दी जाती है वह अनिसृष्ट दोष से दूषित समझनी चाहिए ।भगवती आराधना / विजयोदया टीका/230/443/10
वसतिका का दोष - देखें वसतिका ।
2. आहार का दोष
आहार के 46 दोषों मे से एक दोष- अनिसृष्ट दोष है। - अनिसृष्ट के दो भेद हैं - ईश्वर और अनीश्वर दोनों के भी मिलाकर चार भेद हैं। पहला भेद ईश्वर सारक्ष तथा ईश्वर के तीन भेद - व्यक्त, अव्यक्त व संघाट। दान का स्वामी देने की इच्छा करे और मंत्री आदि मना करें तो दिया हुआ भी अनीशार्थ है। स्वामी से अन्य जनों का निषेध किया अनीश्वर कहलाता है। वह व्यक्त अर्थात् वृद्ध, अव्यक्त अर्थात् बाल और संघाट अर्थात् दोनों के भेद से तीन प्रकार का है मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 447-461
और देखें आहार - II.2.2।