अपरिणत: Difference between revisions
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<p> | <span class="GRef">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 463-475 </span><p class="PrakritText">तिलतंडुलउसणोदय चणोदय तुसोदयं अविधुत्थं। अण्णं तहाविहं वा अपरिणदं णेव गेण्हिज्जो ॥473॥</p> | ||
<p class="HindiText">'''अपरिणत दोष''' - तिल के धोने का जल, चावल का जल, गरम होके ठंढा हुआ जल, तुष का जल, हरण चूरण आदि कर भी परिणित न हुआ जल हो वह नहीं ग्रहण करना। ग्रहण करने से '''अपरिणत दोष''' आता है ॥473॥ <br> | |||
<p class="HindiText"> अशन दोष - शंकित, मृक्षित, निक्षिप्त, पिहित, संव्यवहरण, दायक, उन्मिश्र, '''अपरिणत''', लिप्त, त्यक्त ये दस दोष अशन के हैं।</p> | |||
<p class="HindiText">आहार का एक दोष-देखें [[ आहार#II.4.4 | आहार - II.4.4]]।</p> | |||
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Latest revision as of 13:35, 24 December 2022
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 463-475
तिलतंडुलउसणोदय चणोदय तुसोदयं अविधुत्थं। अण्णं तहाविहं वा अपरिणदं णेव गेण्हिज्जो ॥473॥
अपरिणत दोष - तिल के धोने का जल, चावल का जल, गरम होके ठंढा हुआ जल, तुष का जल, हरण चूरण आदि कर भी परिणित न हुआ जल हो वह नहीं ग्रहण करना। ग्रहण करने से अपरिणत दोष आता है ॥473॥
अशन दोष - शंकित, मृक्षित, निक्षिप्त, पिहित, संव्यवहरण, दायक, उन्मिश्र, अपरिणत, लिप्त, त्यक्त ये दस दोष अशन के हैं।
आहार का एक दोष-देखें आहार - II.4.4।