अपेक्षा: Difference between revisions
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<strong id = "II.1">1. सापेक्ष व निरपेक्ष का अर्थ</strong></p> | |||
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<span class="GRef"> नयचक्र बृहद्/250 </span><span class="PrakritText">अवरोप्परसावेक्खं णयविसयं अह पमाण विसयं वा। तं सावेक्खं तत्तं णिरवेक्खं ताण विवरीयं।</span> = <span class="HindiText">प्रमाण व नय के विषय परस्पर एक-दूसरे की अपेक्षा करके हैं अथवा एक नय का विषय दूसरी नय के विषय की अपेक्षा करता है, इसी को सापेक्ष तत्त्व कहते हैं। निरपेक्ष तत्त्व इससे विपरीत है।</span></p> | |||
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<strong id = "II.2">2. विवक्षा एक ही अंश पर लागू होती है अनेक पर नहीं</strong></p> | |||
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<span class="GRef"> पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/300 </span><span class="SanskritText">नहि किंचिद्विधिरूपं किंचित्तच्छेषतो निषेधांशम् । आस्तां साधनमस्मिन्नाम द्वैतं न निर्विशेषत्वात ।300।</span> = <span class="HindiText">कुछ विधि रूप और उस विधि से शेष रहा कुछ निषेध रूप नहीं है तथा ऐसे निरपेक्ष विधि निषेध रूप सत् के साध्य करने में हेतु का मिलना तो दूर, विशेषता न रहने से द्वैत भी सिद्ध नहीं हो सकता है।</span></p> | |||
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Latest revision as of 15:40, 24 December 2022
अपेक्षा निर्देश
1. सापेक्ष व निरपेक्ष का अर्थ
नयचक्र बृहद्/250 अवरोप्परसावेक्खं णयविसयं अह पमाण विसयं वा। तं सावेक्खं तत्तं णिरवेक्खं ताण विवरीयं। = प्रमाण व नय के विषय परस्पर एक-दूसरे की अपेक्षा करके हैं अथवा एक नय का विषय दूसरी नय के विषय की अपेक्षा करता है, इसी को सापेक्ष तत्त्व कहते हैं। निरपेक्ष तत्त्व इससे विपरीत है।
2. विवक्षा एक ही अंश पर लागू होती है अनेक पर नहीं
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/300 नहि किंचिद्विधिरूपं किंचित्तच्छेषतो निषेधांशम् । आस्तां साधनमस्मिन्नाम द्वैतं न निर्विशेषत्वात ।300। = कुछ विधि रूप और उस विधि से शेष रहा कुछ निषेध रूप नहीं है तथा ऐसे निरपेक्ष विधि निषेध रूप सत् के साध्य करने में हेतु का मिलना तो दूर, विशेषता न रहने से द्वैत भी सिद्ध नहीं हो सकता है।
-विशेष देखें स्याद्वाद - 2।