अलौकिक शुचि: Difference between revisions
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< | <span class="HindiText"><span class="GRef"> राजवार्तिक/9/7/6/602/4 </span><br/><span class="SanskritText">शुचित्वं द्विविधम् - लौकिकं लोकोत्तरं चेति। तत्रात्मन: प्रक्षालितकर्ममलकलंकस्य स्वात्मन्यवस्थानं लोकोत्तरं शुचित्वम्, तत्साधनं च सम्यग्दर्शनादि तद्वंतश्च साधव: तदधिष्ठानानि च निर्वाणभूम्यादोनि तत्प्राप्त्युपायत्वाच्छुचिव्यपदेशमर्हंति। </span> = <span class="HindiText"> लौकिक और लोकोत्तर के भेद से शुचित्व दो प्रकार का है। कर्ममल-कलंकों को धोकर आत्मा का आत्मा में ही अवस्थान '''लोकोत्तर शुचित्व''' है और इसके साधन सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रयधारी साधुजन तथा उनसे अधिष्ठित निर्वाणभूमि आदि मोक्ष प्राप्ति के उपाय होने से शुचि हैं। <span class="GRef"> (चारित्रसार/190/6) </span> | ||
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राजवार्तिक/9/7/6/602/4
शुचित्वं द्विविधम् - लौकिकं लोकोत्तरं चेति। तत्रात्मन: प्रक्षालितकर्ममलकलंकस्य स्वात्मन्यवस्थानं लोकोत्तरं शुचित्वम्, तत्साधनं च सम्यग्दर्शनादि तद्वंतश्च साधव: तदधिष्ठानानि च निर्वाणभूम्यादोनि तत्प्राप्त्युपायत्वाच्छुचिव्यपदेशमर्हंति। = लौकिक और लोकोत्तर के भेद से शुचित्व दो प्रकार का है। कर्ममल-कलंकों को धोकर आत्मा का आत्मा में ही अवस्थान लोकोत्तर शुचित्व है और इसके साधन सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रयधारी साधुजन तथा उनसे अधिष्ठित निर्वाणभूमि आदि मोक्ष प्राप्ति के उपाय होने से शुचि हैं। (चारित्रसार/190/6)
शुचि के बारे में अधिक जानकारी हेतु देखें - शुचि