अंगारक: Difference between revisions
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<p id="2">(2) विजयार्द्ध पर्वत पर स्थित किन्नरोद्गीत नगर के निवासी ज्वलनवेग विद्याधर और उसकी रानी विमला का पुत्र, अशनिवेग का भतीजा । इसके पिता ने अपना राज्य इसे न देकर अपने छोटे भाई अशनिवेग को दिया था | <p id="2" class="HindiText">(2) विजयार्द्ध पर्वत पर स्थित किन्नरोद्गीत नगर के निवासी ज्वलनवेग विद्याधर और उसकी रानी विमला का पुत्र, अशनिवेग का भतीजा । इसके पिता ने अपना राज्य इसे न देकर अपने छोटे भाई अशनिवेग को दिया था किंतु इसने अपने चाचा से राज्य छीन लिया था । चचेरी बहिन श्यामा और बहनोई वसुदेव का हरण करने में इसने संकोच नहीं किया था । इस घटना के फलस्वरूप वसुदेव ने इसे बहुत दंडित किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_19#81|हरिवंशपुराण - 19.81-85]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_19#97|हरिवंशपुराण - 19.97-111]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_11#21|पद्मपुराण - 11.21-22]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) रामकालीन एक विद्याधर । इसने दधिमुख नगर के राजा | <p id="3" class="HindiText">(3) रामकालीन एक विद्याधर । इसने दधिमुख नगर के राजा गंधर्व और उनकी रानी अमरा की चंद्रलेखा आदि कन्याओं पर मनोन्गामिनी विद्या की सिद्धि के समय अनेक उपसर्ग किये थे किंतु शांतिपूर्वक उपसर्ग सहने से छ: वर्ष में सिद्ध होने वाली यह विद्या इन्हें अवधि से पूर्व ही सिद्ध हो गयी थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_51#24|पद्मपुराण - 51.24-41]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
अंगारक, ये देश भरत क्षेत्र की पूर्व दिशा में स्थित थे।हरिवंशपुराण - 11.68 देखें मनुष्य - 4
पुराणकोष से
(1) भरतक्षेत्र की पूर्व दिशा में स्थित एक देश । हरिवंशपुराण - 11.68
(2) विजयार्द्ध पर्वत पर स्थित किन्नरोद्गीत नगर के निवासी ज्वलनवेग विद्याधर और उसकी रानी विमला का पुत्र, अशनिवेग का भतीजा । इसके पिता ने अपना राज्य इसे न देकर अपने छोटे भाई अशनिवेग को दिया था किंतु इसने अपने चाचा से राज्य छीन लिया था । चचेरी बहिन श्यामा और बहनोई वसुदेव का हरण करने में इसने संकोच नहीं किया था । इस घटना के फलस्वरूप वसुदेव ने इसे बहुत दंडित किया था । हरिवंशपुराण - 19.81-85,हरिवंशपुराण - 19.97-111, पद्मपुराण - 11.21-22
(3) रामकालीन एक विद्याधर । इसने दधिमुख नगर के राजा गंधर्व और उनकी रानी अमरा की चंद्रलेखा आदि कन्याओं पर मनोन्गामिनी विद्या की सिद्धि के समय अनेक उपसर्ग किये थे किंतु शांतिपूर्वक उपसर्ग सहने से छ: वर्ष में सिद्ध होने वाली यह विद्या इन्हें अवधि से पूर्व ही सिद्ध हो गयी थी । पद्मपुराण - 51.24-41