पृच्छना: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/9/25/443/4 </span><span class="SanskritText"> संशयच्छेदाय निश्चितवलाधानाय वा परानुयोगः पृच्छना।</span> = <span class="HindiText">संशय का उच्छेद करने के लिए अथवा निश्चित बल को पुष्ट करने के लिए प्रश्न करना पृच्छना है। <span class="GRef">( राजवार्तिक/9/25/2/624/11 )</span>, <span class="GRef">( तत्त्वसार/7/18 )</span>, <span class="GRef">( अनगारधर्मामृत/7/84 )</span>, <span class="GRef">( धवला 14/5,6,13/9/3 )</span>। </span><br /> | |||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/9/25/2/624/11 </span><span class="SanskritText">आत्मोन्नतिपरातिसंधानोपहाससंघर्षप्रहसनादिविवर्जितः संशयच्छेदाय निश्चितबलाधानाय वा ग्रंथस्यार्थस्य तदुभयस्य वा परं प्रत्यनुयोगः पृच्छनमिति भाष्यते।</span> = <span class="HindiText">आत्मोन्नति परातिसंधान परोपहास संघर्ष और प्रहसन आदि दोषों से रहित हो संशयच्छेद या निर्णय की पुष्टि के लिए ग्रंथ अर्थ या उभय का दूसरे से पूछना पृच्छना है। <span class="GRef">( चारित्रसार/153/1 )</span>। </span><br /> | |||
<span class="GRef"> धवला 9/4,1,55/262/8 </span><span class="PrakritText">तत्थ आगमे अमुणिदत्थपुच्छा वा उवजोगो।</span> = <span class="HindiText">आगम में नहीं जाने हुए अर्थ के विषय में पूछना भी उपयोग है। </span></p> | |||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/9/25/443/4 संशयच्छेदाय निश्चितवलाधानाय वा परानुयोगः पृच्छना। = संशय का उच्छेद करने के लिए अथवा निश्चित बल को पुष्ट करने के लिए प्रश्न करना पृच्छना है। ( राजवार्तिक/9/25/2/624/11 ), ( तत्त्वसार/7/18 ), ( अनगारधर्मामृत/7/84 ), ( धवला 14/5,6,13/9/3 )।
राजवार्तिक/9/25/2/624/11 आत्मोन्नतिपरातिसंधानोपहाससंघर्षप्रहसनादिविवर्जितः संशयच्छेदाय निश्चितबलाधानाय वा ग्रंथस्यार्थस्य तदुभयस्य वा परं प्रत्यनुयोगः पृच्छनमिति भाष्यते। = आत्मोन्नति परातिसंधान परोपहास संघर्ष और प्रहसन आदि दोषों से रहित हो संशयच्छेद या निर्णय की पुष्टि के लिए ग्रंथ अर्थ या उभय का दूसरे से पूछना पृच्छना है। ( चारित्रसार/153/1 )।
धवला 9/4,1,55/262/8 तत्थ आगमे अमुणिदत्थपुच्छा वा उवजोगो। = आगम में नहीं जाने हुए अर्थ के विषय में पूछना भी उपयोग है।
पुराणकोष से
स्वाध्याय की एक भावना । इसमें प्रश्नोत्तर के द्वारा तत्त्वज्ञान प्राप्त किया जाता है । महापुराण 21.96
स्वाध्याय तप का एक भेद । देखें स्वाध्याय