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| <p id="1"> (1) जीव को जानने के स्पर्शन, रसना, घ्राण, वस्तु, और श्रोत्र ये पाँच साधन । इनमें स्थावर जीवों के केवल स्पर्शन इन्द्रिय तथा त्रस जीवों के यथाक्रम सभी इन्द्रियाँ पायी जाती है । भावेन्द्रिय और द्रव्येन्द्रिय के भेद से ये दो प्रकार की भी है । इनमें भावेन्द्रियाँ लब्धि और उपयोग रूप है तथा द्रव्येन्द्रियाँ निवृत्ति और उपकरण रूप । </p>
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| <p> स्पर्शन अनेक आकारों वाली है, रसना खुरपी के समान, घ्राण तिलपुष्प के समान, चक्षु मसूर के और घ्राण यव की नली के आकार की होती है । </p>
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| <p> एकेन्द्रिय जीव की स्पर्शन इन्द्रिय का उत्कृष्ट विषय चार सौ धनुष है| इसी प्रकार द्वीन्द्रिय के आठ सौ धनुष और त्रीन्द्रिय के सोलह सौ धनुष, चतुरिन्द्रिय के बत्तीस सौ धनुष और असैनी पंचेन्द्रिय के चौसठ सौ धनुष है । </p>
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| <p> रसना इन्द्रिय के विषय द्वीन्द्रिय के चौसठ धनुष, त्रीन्द्रिय के एक सौ अट्ठाईस धनुष, चतुरिन्द्रिय के दो सौ छप्पन और असैनी पंचेन्द्रिय के पांच सौ धनुष है । </p>
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| <p> घ्राणेन्द्रिय का विषय त्रीन्द्रिय जीव के सौ धनुष, चतुरिन्द्रिय के दो सौ धनुष और असैनी पंचेन्द्रिय के चार सौ धनुष प्रमाण है । </p>
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| <p> चतुरिन्द्रिय अपनी चक्षुरिन्द्रिय के द्वारा उनतीस सौ चौवन योजन तक देखता है, और असैनी पंचेन्द्रिय के चक्षु का विषय उनसठ सौ आठ योजन है । </p>
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| <p> असैनी पंचेन्द्रिय के श्रोत का विषय एक योजन है । सैनी पंचेन्द्रिय जीव नौ योजन दूर स्थित स्पर्श, रस, और गन्ध को यथायोग्य ग्रहण कर सकता है और बारह योजन दूर तक के शब्द को सुन सकता है । सैनी पंचेन्द्रिय जीव अपने चक्षु के द्वारा सैंतालीस हजार दो सी त्रेसठ योजन की दूरी पर स्थित पदार्थ को देख सकता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18. 84-93 </span></p>
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| <p id="2">(2) छ: पर्याप्तियों मे इस नाम की एक पर्याप्ति । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.83 </span></p>
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| | #REDIRECT [[इंद्रिय]] |
| [[ इन्द्रासनि | पूर्व पृष्ठ ]] | |
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| [[ इन्द्रियसंरोध | अगला पृष्ठ ]]
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| [[Category: पुराण-कोष]]
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| [[Category: इ]]
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